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( ३३८ ) जहा पावे एवं पाणावरणिज्जेण वि दंडओ, एवं आउयवज्जेसु जाव अंतराइए दंडओ।
-भग० श० २६ । उ २ । सू ३ __ आयु को छोड़कर बाकी ज्ञानावरणीयादि सात कर्मों के संबंध में पापकर्म-बंधन की तरह ही सब अनंतरोपपन्नक सयोगी-काययोगी दंडकों का विवेचन करना।
नोट-पहले उद्देशक में अधिक जीव नारकादि पच्चीस दंडक कहे हैं किन्तु इस उद्देशक में नैरयिकादि चौबीस दंडक ही कहने चाहिए। क्योंकि औधिक जीव के साथ अनंतरोपपन्नकादि विशेषण नहीं लगाये जा सकते। परम्परोपपन्नक इत्यादि विशेषण भी नहीं लगते। २९ सयोगी अनंतरोपपन्नक जीव दंडक और आयुष्य कर्म का बंधन
अणंतरोववन्नए णं भंते ! नेरइए आउयं कम्मं कि बंधी० पुच्छा ? गोयमा बंधी, नबंधइ बंधिस्सइ ।xxx एवं चेव तइओ भंगोएवंजाव अणागारोवउत्ते। सव्वत्थ वि तइओ भंगो। एवं मणुस्सवज्जं जाव वेमाणियाणं। मणुस्साणं सव्वत्थ तइय-चउत्था भंगा, नवरं कण्हपविखएसु तइओ भंगो, सव्वेसि नाणत्ताई ताई चेव।
----- भग० श. २६ । उ ३। सू ३-४ अनंतरोपपन्नक सयोगी नारकी तीसरे भंग से ( कोई एक बांधा है, नहीं बांधता है, बांधेगा) आयुष्य कर्म का बंधन करता है। मनुष्य को छोड़ कर दंडक में वैमानिक देव तक ऐसा ही कहना। मनुष्य कोई तीसरे तथा कोई चौथे भंग से आयुष्य कर्म को बांधता है।
__ नोट-आयु कर्म के विषय में अनंतरोपपन्नक मनुष्य में तीसरा-चौथा भंग पाया जाता है। यदि वह चरम शरीरी है तो आयु कर्म नहीं बांधता है, नहीं बांधेगा । इस प्रकार चौथा भंग घटित होता है। .३० सयोगी परंपरोपपन्नक नारको आदि दंडक और पापकर्म का बंध
सयोगी परंपरोपपन्नक नारकी आदि दंडक और ज्ञानावरणीय यावत् अतराय कर्मबंध परंपरोववण्णए णं भंते ! णेरइए पावं कम्मं कि बंधी-पुच्छा।
गोयमा! अत्यंगइए पढम-बिइया। एव जहेव पढमो उद्देसओ तहेव परंपरोववणहि वि उद्दसओ भाणियन्वो रइयाइओ तहेव णवदंडगसहिओ।।
अट्ठण्ह वि कम्मप्पगडीणं जा जस्स कम्मरस बत्तवया सा तस्स अहीणमइरिता यन्वा जाव वेमाणिया अणागारोबउत्ता।
--भग० श २६ उ ३ । मू १
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