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( नीललेस्सखुड्डाग कडजुम्मणेरइया ) एवं जहेव करहलेस्सखड्डाग कडजुम्मा | णवरं उववाओ जो वालुयप्पभाए, सेसं तं चेव । वालुयप्पभापुढविणीललेस्सखुडागकडजुम्मणेरहया एवं चेव ।
एवं पंक पाए वि, एवं धूमप्पभाए वि, एवं चउसुवि जुम्मेसु x x x
- भग० श० ३१ । उ ३ । सू १
कृष्ण लेश्यावाले क्षुद्रकृतयुग्म नैरयिक के विषय में जैसा कहा, वैसा ही नीललेश्या । और अध्यववाले क्षुद्रकृत युग्म नारकी आत्म प्रयोग (जोग रुप व्यापार) से उत्पन्न होते साय - जोग-करण से परभव के आयुष्य का बंध करते हैं । वालुकाप्रभा, पंकप्रभ व धूमप्रभा नारकी के विषय में भी चारों युग्म का कथन कहना चाहिए ।
नोट - इसमें असंज्ञी व सरीसृप उत्पन्न नहीं होते हैं ।
५३.१० कापोतलेशी क्षुद्र कृत युग्म नारकी का उपपात आत्म प्रयोग से तथा अध्यवसाय-जोग- -करण से आयुबंध ।
( काउलेस्सखडागकडजुम्मणेरइया ) एवं जहेब कण्हलेस्सखुडागकडजुम्म० णवरं उववाओ, सेसं तं चैव ।
( रणप्पभापुढवि काउलेस्सबुड्डाग कडजुम्मणेर इया ) एवं चेव । एवं सक्करप्पभाए वि, एवं वालुयप्पभाए वि एवं चउसु वि जुम्मेसु ।
- भग० श० ३१ । उ ४ । सू १ ।२
कापोत लेशी क्षुद्रकृत युग्म राशि प्रमाण नारकी आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं । अध्यवसाय - जोग-करण से परभव का आयुष्य बाँधते हैं । इसी प्रकार रत्नप्रभा नारकी, शर्कराप्रभा नारकी तथा वालुकाप्रभा नारकी में चारों युग्म का निरुपण करना चाहिए ।
• ५३.११ क्षुद्रकृत युग्म राशि नारकी के योग से परभव का आयुष्य बंध
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नारकी
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नारको
नारकी
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भवसिद्धियखुद्दागकडनुम्मणेरइया णं भंते!
कओ उववज्जं ति कि रइया ? एवं जहेव ओहिओ गमओ तहेव णिरवसेसं जाव णो परप्पओगेणं उववज्जति ।
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रयणप्पभापुढविभवसिद्धियखुड्डाकडजुम्मेणेरइया णं भंते ।
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एवं चेव, णिरवसेस, एवं जाव अहेसत्तमाए । एवं भवसिद्धियखुड्डागतेओगणेरइया वि ।
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