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( ३०१ )
औषिक नारकी की तरह रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी यावत् सप्तम पृथ्वी के नारकी आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते हैं ।
वे जीव अपने अध्यवसाय रूप और जोग आदि के व्यापार से करणोपाय द्वारा परभव की आयु बांधते हैं ।
•५३.२ ( खुड्डागतेओगणेरइया ) xxx सेसं जहा कडजुम्मस्स, एवं जहा अहे
सत्तमाए ।
- भग० श० ३१ । उ १ । सू ७
-५३.३ ( खुड्डागदावरजुम्मणेरइया) सेसं तं चैव जाव अहेसत्तमाए ।
- भग० श० ३१ । उ १ । सू८ -५३.४ ( खुड्डागकलिओगणेरइया ) एवं जहेव खुड्डागकडजुम्मे । Xxx । सेसं तं चेव । एवं जाव अहेसत्तमाए ।
- भग० श० ३१ । उ १ । सू ९
जैसा क्षुद्रकृतयुग्मराशि का उपपात, आयुष्यबंध, आदि के विषय में कहा वैसा ही क्षुद्रत्रयोज युग्मराशि, क्षुद्रद्वापर युग्मराशि तथा क्षुद्रकल्योज राशि के विषय में जानना ( विषयांक ५३.१ ) ।
• ५३.५ कृष्णलेशी क्षुद्रकृत युग्म प्रमाण राशि का योग रूप व्यापार से उपपात तथा परभव के आयुष्य का बंधन ।
( कण्हलेस्स खुड्डागकडजुम्मणेरइया ) एवं चेव जाब ओहियगमो जाव णो परप्पओगेण उववज्जंति । x x x ॥१॥
(धूमप्पभापुढविकण्हलेस्सखडागकडजुम्मणेरइया) एवं चैव णिरवसेसं । एवं तमाए वि, अहेतत्तमाए ।
- भग० श० ३१ । उ २ । सू १, २
क्षुद्रकृत राशि प्रमाण कृष्ण लेश्यावाले नारकी का उपपात तथा परभव के आयुष्य के बंधन के सम्बन्ध में जैसा औधिक गमक के विषय में कहा- जैसा ही कहना ।
क्षुद्रकृत युग्म राशि प्रमाण कृष्ण लेश्यावाले धूमप्रभा नारकी, समः प्रभा नारकी तथा अधः सप्तम नारकी के विषय में इसी प्रकार कहना ।
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