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नरक में इन तीन ज्ञान वाले जीवों का उत्पाद और उद्वर्तना तो नहीं है किन्तु सत्ता है। .३ देवावासों में
गमक १-केवतिया गं भंते ! असुरकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता। गोयमा! चोट्टि असुरकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता। ते गं भंते ! कि संखेज्जवित्थडा ? असखेज्जवित्थडा ? गोसमा ! संखेज्जवित्थडा वि, असंखेज्जवित्थडा वि ।
चोसट्ठीए णं भंते ! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु असुरकुमारवासेसु एगसमएण केवतिया असुरकुमारा उववज्जति, जाव केवतिया तेउलेस्सा उववज्जति, केवइया कण्हपक्खिया उववज्जति ? x x x ( केवइया मणजोगी उववज्जति, केवइया वइजोगी उवज्जति, केवइया कायजोगी उववज्जति ? )
एवं जहा रयणप्पभाए तहेव पुच्छा, तहेव वागरणं, णवरं दोहि वेएहि उववज्जति, गपुसगवेयगा ण उववज्जति, सेसं तंचेव ।
गमक २-उव्वट्टता वि तहेव, णवरं असण्णी उन्वट्ट ति। ओहिनाणी ओहिवंसणी य णं उन्वट्टति, सेसं तं चेव ।
गमक ३ –पण्णत्तएसु तहेव, नवरं संखेज्जगा इत्थिवेदगा पण्णत्ता, एवं पुरिसवेदगा वि, नपुसगवेदगा नत्थि x x x सेसं तं चेव। तिसु वि गमएसु चत्तारि लेस्साओ भाणियव्वाओ।
एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि, नवरं तिसु वि गमएसु असंखेज्जा भाणियव्वाxxx।
-भग० श० १३ । उ २ । सू २६, २७ केवतिया णं भंते, नागकुमारावाससयसहस्सा पण्णता? एवं जाव थणियकुमारा, नवरं-जत्थ जत्तिया भवणा?
-भग० श० १३ । उ २ । सू २८ असुरकुमार देवों के चौसठ लाख आवास कहे गये हैं।
असुरकुमार देवों के वे आवास संख्यात योजन विस्तारवाले भी हैं और असंख्यात योजन विस्तारवाले भी है।
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