SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 393
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २७६ ) - ७ करणकृति अनुगम में स्पर्शानुगम में क्षेत्रानुगम से कृतियुक्त संचित जीव पंचमणजोगि- पंचवचिजोगीणं ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए लोगस्स असंखेज्जदिभागो सव्वलोगो वा । एवं वेउव्वियपरिसारणकदीए वि । वेउब्वियतेजा - कम्मइयसंघादण - परिसादणकदीए लोगस्स असं खेज्जदिभागो अट्ठचोद्द सभागा देखणा सव्वलोगो वा । आहारदोष्णिपदाणं खेत्तभंगो । कायजोगीणमोघो । वरि तेजा - कम्मइयपरिसादणं णत्थि । ओरालियकायजोगीसु ओरालिय-तेजाकम्मइयसंघादण - परिसादणकदीए सव्वलोगो । ओरालिय परिसादणक दीए वेव्वियतिणिपदाणं तिरिक्खभंगो। आहारपरिसादणकदीए खेत्तभंगो । ओरालि मिस्स कायजोगीसु अप्पणो तिष्णिपदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो । वेउव्वियकायजोगीसु अप्पणो पदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? अट्ठ-तेरहचोहसभागा वा देसूणा । वेउव्वियमिस्सकायजोगीणं खेसभंगो । आहारदुगस्स खेत्तभंगो । कम्मइयकायजोगीणं ओरालियपरिसादणकदीए केवलिभंगो | तेजाकम्मइयसंघादणपरिसादणकटीए केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो । - षट्० खण्ड ० ४। १ । सू ७१ । पु ९ । पृष्ठ० ३७४ । ५ पाँच मनोयोगी और पाँच वचनयोगी जीवों में औदारिक शरीर की संघातनपरिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा लोक का असंख्यातवाँ भाग अथवा सर्वलोक स्पर्श किया गया है । इसी प्रकार वैऋियिक शरीर को परिशातनकृतियुक्त जीवों की भी प्ररूपणा करना चाहिए । वैक्रियिक, तेजस व कार्मण शरीर की संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा लोक का असंख्यातवां भाग कुछ कम आठ बटे चौदह भाग अथवा सर्व लोक स्पर्श किया गया है । आहारक शरीर के दो पद युक्त जीवों की प्ररुपणा क्षेत्र प्ररूपणा के समान है । काययोगियों की प्ररूपणा ओघ के समान है । विशेष इतना है कि इनके तैजस और कार्मण शरीर की परिशातनकृति नहीं होती । औदारिक काययोगियों में औदारिक, तेजस व कार्मण शरीर की संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा सर्वलोक स्पर्श किया गया है । औदारिक शरीर की परिशातनकृति तथा वैक्रियशरीर के तीनों पद युक्त जीवों की प्ररूपणा तिर्यंचों के समान है । आहारक शरीर की परिशातनकृति युक्त जीवों की प्ररूपणा क्षेत्र प्ररूपणा के समान है । औदारिकमिश्रकाययोगियों में अपने तीनों पद युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया हैं । उक्त जीवों द्वारा सर्वलोक स्पर्श किया गया है । वैक्रियिककाययोगियों में अपने पदों द्वारा कितना स्पर्श किया गया है ? उक्त जीवों चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं । वैक्रियिकमिश्रकायसमान है । आहारक और आहारक मिश्रकाययोगियों द्वारा कुछ कम आठ व तेरह बटे योगियों की प्ररूपणा क्षेत्रत्ररूपणा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy