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( २७५ ) आहारपरिसादणकवी तेजाकम्मइयसंघावण-परिसादणकदीच। ओरालियमिस्सकायजोगीणं तसअपज्जतभंगो। वेउम्वियकायजोगीसु अत्थि वेउब्विय-तेजाकम्मइय-संघादण-परिसादणकदी। वेउवियमिस्सकायजोगीसु अस्थि वेउम्वियसंघादणकदी संघादण-परिसादणकदी तेजा-कम्मइयसंघावणपरिसावणकदी च । आहारकायजोगीसु अत्थि ओरालियपरिसादणकदी आहार-तेजा-कम्मइयसंघावणपरिसादणकदी च। एवं आहारमिस्सकायजोगी। परि आहारसंघावण पि अत्थि। कम्मइयकायजोगीसु अस्थि ओरालियपरिसादणकदी, लोगमावरिदकेवलीसु तदुवलंभादो। तेजा-कम्मइयसघादण-परिसादणकदी च अत्यि।
-षट् ० खण्ड० ४ । १ । सू ७१ । पु ९ । पृष्ठ० ३५६ । ७ पाँच मनोयोगियों और पाँच वचनयोगियों में औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर की परिशातन कृति और संघातन-परिशातनकृति होती है। इनके उक्त शरीरों की संघातनकृति क्यों नहीं कही है ? क्योंकि संघातनकृति में काययोग को छोड़कर दूसरा योग नहीं होता है।
__पाँच मनोयोगी और पांच वचनयोगियों में तैजस और कार्मण शरीर की संघातनकृति होती है।
काययोगियों को प्ररूपणा ओघ के समान है। विशेष इतना है कि उनमें तेजस और कार्मण शरीर की परिशातन कृति नहीं होती, क्योंकि अयोगी केवली को छोड़कर अन्य मार्गणाओं में इस कृति का अभाव है। औदारिककाययोगियों में औदारिकशरीर की परिशातन कृति व संघातन-परिशातन कृति, वैक्रियशरीर के तीनों पद, आहारक शरीर की परिशातनकृति, तथा तैजस और कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृति होती हैं। औदारिकमिश्रकाययोगियों की प्ररुपणा त्रस अपर्याप्तों के समान है ।
वैक्रियिककाययोगियों में वैक्रियशरीर की तथा तैजस व कार्मण शरीर की संघातनपरिशातन कृति होती है। वैऋियिकमिश्रकाययोगियों में वैक्रियशरीर की संघातनकृति व संघातन-परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातन कृति होती है।
आहारककाययोगियों में औदारिक शरीर को परिशातनकृति तथा आहारक, तैजस व कार्मण शरीर की संघातन-परिशातनकृति होती है। इसी प्रकार आहरकमिश्रकाययोगियों में समझना चाहिए। विशेष केवल इतना है कि इनमें आहारक शरीर की संघातनकृति भी होती है।
कार्मणकाययोगियों में औदारिक शरीर की परिशातनकृति होती है, क्योंकि लोकपूरण समुद्घात को प्राप्त हुए केवलियों में उक्त कृति पायी जाती है। उनमें तैजस व कामंणशरीर की संघातन-परिशातनकृति भी होती है।
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