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औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी-ये प्रथम और अप्रथम समय में नियम से कृति है। क्योंकि इनमें सर्वकाल केवल एक ही जीवों का अभाव है।
___ x x x ओरालिय कायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगि-कम्मइयकायजोगि x x पढमा पढमा समएसु णियमा कदो। एदेसु एग-दोजीवाणं केवलाणं सव्वकालं पवेसामावादो।
-षट् ० खण्ड० ४ । २ । सू ६६ । टीका। पु ९ पृष्ठ. २७९ '३ चरम-अचरमानुगम की अपेक्षा योगी जीव और कृति xx x एवं जहा पढमाणुगमो परुविदो तदा परुवेदवोxxx
-षट् खण्ड० ४ । १ । सू ६६ । टीका । पु ९ । पृष्ठ• २८० जिस प्रकार-योगी जीवों की गणनकृति का प्रथम-अप्रथम अनुगम की अपेक्षा वर्णन किया गया उसी प्रकार चरमाचरम अनुगम की अपेक्षा करना चाहिए । .४ संचयानुगम में द्रव्यानुगम की अपेक्षा योगी-जीव और कृति
मणुस-मणुस अपज्जत्त एसु कदि-णोकदि-अवत्तव्व-संचिदा केत्तिया ? असंखेज्जा।x x x एवं x x x पंचमणजोगि - पचवचिजोगि- वेउवियगित्थि xxx बत्तव्वं, भेदाभावादो।
मणुसपज्जत्त x x x आहारदुग्गxxx कदि - णकदि - अवत्तव्वसंचिदा केत्तिया? संखेज्जा।
___ x x x काययोगि (सु) x x x कदि-णोकदि-अवत्तव्व-संचिदा कत्तिया? अणंता।
___xxx ओरालिय कायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगि-कम्मइयकायजोगि (सु) x x x कदि-संचिदा केत्तिया? अणंता। अंतरेण विणा गंगापवम्होच्च अणंतजीवपवेसादो।
-षट्० खण्ड ० ४ । १ । सू ६६ । टीका । पु ९ । पृष्ठ० २८४ । ५ मनुष्य व मनुष्य अपर्याप्तों में कृति, नोकृति और अवक्तव्य संचित जीव असंख्यात है। इसी प्रकार पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, वैक्रियिकद्विक-जीवों में कहना चाहिए, क्योंकि इनके कोई विशेषता नहीं है ।
मनुष्य पर्याप्त, आहारकद्विक में कृति, नोकृति व अवक्तव्य संचित संख्यात है, क्योंकि ये राशियाँ संख्यात है।
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