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समाधान - नहीं होते, क्योंकि उनकी एक साथ वृत्ति का निषेध किया गया है ।
शंका- अनेक योगों की एक साथ वृत्ति पायो तो जाती है ।
समाधान- नहीं पायी जाती है, क्योंकि इन्द्रियों के विषय से परे जो जीवप्रदेशों का परिस्पन्द होता है उसका इन्द्रियों द्वारा ज्ञान मान लेनेमें विरोध आता है । जीवों के चलते समय जीव प्रदेशों के संकोच विकोच का नियम नहीं है, क्योंकि, सिद्ध होने के प्रथम समय में जब जीव यहाँ से, अर्थात् मध्य लोक से, लोक के अग्रभाग को जाता है तब उसके जीव प्रदेशों में संकोच-विकोच नहीं पाया जाता है ।
शंका- मनोयोग क्षायोपशमिक कैसे हैं ।
समाधान — बतलाते हैं, चूंकि वीर्यान्तरायकर्म के सर्वधाति स्पर्धकों के सत्त्वोपशम से व देशघाति स्पर्धकों के उदय से, नोइन्द्रियावरण कर्म के सर्वघाति स्पर्धकों के उदय-क्षय से व उन्हीं स्पर्धकों के उदय-क्षय से व उन्हीं स्पधंकों के सत्त्वोपशम से तथा देशघाति स्पर्धकों के उदय से मनपर्याप्ति पूरी करनेवाले जीव के मनोयोग उत्पन्न होता है, अतः उन्हें क्षायोपशमिक भाव कहते हैं ।
उसी प्रकार, वीर्यान्तराय कर्म के सर्वघाती स्पर्धकों के सत्त्वोपशम से व देशघाती स्पर्धकों के उदय से, जिह्व न्द्रियावरण कर्म के सर्वघाती स्पर्धकों के उदय-क्षय से व उन्हीं के सत्त्वोपशम से तथा देशघाती स्पर्धकों के उदय से भाषापर्याप्ति पूर्ण करने वाले स्वरनामकर्मों सहित जीव के वचनयोग पाया जाता है ।
वीर्यान्तरायकर्म के सर्वघाती स्पर्धकों के सत्त्वोपशम से व देशघाती स्पर्धकों के उदय से काययोग पाया जाता है। अत: काययोग भी क्षायोपशमिक है ।
जीव अयोगी कैसे होता है ? । ३४ ।
यहाँ भी नयों और निक्षेपों के द्वारा अयोगित्व की पूर्ववत् चालना करना चाहिए ।
क्षायिक लब्धि से जीव अयोगी होता है । ३५ ।
योग के कारणभूत शरीरादिक कर्मों के निर्मूल क्षय से उत्पन्न होने के कारण अयोग की लब्धि क्षायिक है ।
४८ योगी और बंधकत्व
जोगाणुवादेण मणजोगि वचिजोगि कायजोगिणी बंधा ।
टीका - एदं पि सुगमं ।
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- षट्० खण्ड ० २ । १ । सू १४ । पु ७ । पृष्ठ १७
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