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( २६५ ) आहारककाययोगियों में प्रमत्त संयत जीव द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा चौवन है।
चूंकि प्रमत्त संयत गुणस्थान को छोड़कर दूसरे गुणस्थान में आहारक शरीर नहीं पाया जाता है। इसका ज्ञात कराने के लिए प्रमत्तसंयत पद का ग्रहण किया है।
आहारकमिश्रकाययोगियों में प्रमत्तसंयत जीव द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा संख्यात है।
यहाँ पर आचार्य परंपरा से आये हुए उपदेशानुसार आहारकमिश्रकाययोग में सत्तावीस जीव होते हैं। अथवा, आहारकमिश्रकाययोग में जिनदेवने जितनी संख्या देखी हो, उतने संख्यात जीव होते हैं, सत्तावीस नहीं, क्योंकि सूत्र में संख्यात यह निर्देश अन्यथा बन नहीं सकता है। तथा मिश्रयोगियों में आहारककाययोगी जीव संख्यात गुणे हैं, इससे भी प्रतीत होता है कि आहारकमिश्र काययोगी जीव संख्यात है, सत्तावीस नहीं। कदाचित् कहा जाय कि दो भी तो संख्यात है। परन्तु दो यह संख्या संख्यात होते हुए भी उसका यहाँ ग्रहण नहीं किया गया है, क्योंकि सबके द्वारा अजघन्यानुत्कृष्ट रूप संख्यात का ही ग्रहण किया है। अथवा सर्व अपर्याप्त-काल से जघन्य पर्याप्त-काल भी संख्यातगुणा है, इससे भी यही प्रतीत होता है कि आहारकमिश्र काययोगी सत्तावीस नहीं लेना चाहिए।
'०७ आहारक काययोगी का द्रव्य प्रमाण .०८ आहारकमिश्र काययोगी का द्रव्य प्रमाण
आहारकायजोगी बव्वपमाणेण केवडिया ?
-षट् खण्ड ० २ । ५ । सू ९८ । पु ७ । पृष्ठ० २८० टीका-सुगमं ।
चदुवण्णं ।
-षट्० खण्ड० २ । ५ । सू ९९ । पु ७ । पृष्ठ० २८० टोका-एवं पि सुगमं। आहारमिस्सकायजोगी दव्वपमाणेण केवडिया?
-षट् • खण्ड० २ । ५ । सू १०.। पु७ । पृष्ठ० २८० टीका-सुगम।
संखेज्जा। -षट्० खण्ड० २।५ । सू १.१ । पु ७ । पृष्ठ० २८०। ८१
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