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उपर्युक्त जीव क्षेत्र की अपेक्षा अनन्तानन्त लोक-प्रमाण है।
अस्तु-इस सूत्र के द्वारा उत्कृष्ट अनन्तानन्त का प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि अन्यथा लोकनिर्देश की उपपत्ति नहीं बनती। शेष सूत्रार्थ सुगम है । काययोगी जीव की संख्या कार्मण काययोगी की संख्या औदारिकमिश्र काययोग की संख्या औदारिक काययोग की संख्या
कम्मोरालियमिस्सय ओरालद्धासु संचिद अणंता। कम्मोरालियमिस्सय ओरालियजोगिणो जीदा॥
गोजी० गा० २६४
कामंणकाययोग, औदारिकमिश्र काययोग, औदारिककाययोग के आगे कहे कालों में संचित हुए कार्मणकाययोगी औदारिकमिश्र काययोगी और औदारिक काययोगी जीव प्रत्येक अनन्तानन्त है।
.०५ वैक्रियकाययोगी का द्रव्य प्रमाण
वेउविकायजोगीसु मिच्छाइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया, देवाणं संखेज्जदिभागूणो।
-षट्० खण्ड० १।२ । सू ११५ । पु ३ । पृष्ठ • ३९८ टीका-एदस्स सुत्तस्स अत्थो वच्चदे। देवाणं जो रासी अप्पप्पणो संखेज्जदिभाएण परिहीणो वेउब्वियकायजोगिमिच्छाइट्रीणं पमाणं होदि । कुदो ? देव-णेरइयरासिमेगट्ठ करिय मण-वचिकायजोगद्धासमासेण खंडिय लद्धतिप्पडिरासि काऊण अप्पप्पणो अद्धाहि गुणिदे सग-सगरासीओ हवंति। जेण मणवचिजोगरासीओ देवाणं संखेज्जदिभागो हवं ति, तेण वेउविकायजोगिमिच्छाइद्विरासिपमाणं संखेज्जदिभागपरिहीणदेवरासिणा समाणं भवदि।
एत्थ अवहारकालो उच्चदे। देव णेरइयमिच्छाइद्विरासिसमासम्मि मणवधि-वेउन्विमिस्सकाय - कम्मइयकायजोगिदेव - जेरइयमिच्छाइट्ठिरासिसमासेण भागे हिदे संखेज्जरुवाणि लभंति। तेहि रुवर्णेहि संखेज्जपदरंगुलमेत्तं देव-णेरइयसमासअवहारकालं खंडिय लद्ध तम्हि चेव पक्खित्ते वेउब्वियकायजोगिमिच्छाइट्ठिअवहारकालो होदि।
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