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( २५९ ) कायजोगि-ओरालियकायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगि-कम्मइयकायजोगी दव्वपमाणेण केवडिया?
-षट् ० खण्ड ० २ । ५ । सू ९० । पु ७ । पृष्ठ० २७८ टोका-सुगमं ।
अणंता।
--षट्० खण्ड० २ । ५ । सू ९१ टीका । पु ७ । पृष्ठ० २७८ टोका—एदेण संखेज्जासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो। अणंतं पि तिविहं । तत्थ एदम्हि अणंते एदाओ रासीओ टिदाओ त्ति जाणावण?मुत्तरसुत्तं भणविअणंताणताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण।
-षट् खण्ड० २ । ५ । सू ९२ । पु ७ । पृष्ठ० २७९ टीका-एदेण परित्त-जुत्ताणताणं जहण्णअणंताणतस्स य पडिसेहो कवो, तेसु अणताणताणमोसप्पिणि-उस्सप्पिणीणमभावादो। संपहि दोसु अणंताणतेसु एक्कस्स पडिसेहट्टमुत्तरसुत्तं भणदि
खेत्तेण अणंताणंता लोगा।
-षट्० खण्ड ० २ । ५ । सू ९३ । पु ७ पृष्ठ० २७९ टोका-एदेण उक्कस्साणताणंतस्स पडिसेहो कदो, लोगवयणण्णहाणुववत्तीदो। सेसं सुगम।
काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी और कार्मणकाययोगी द्रव्यप्रमाण से अनन्त हैं।
अस्तु-इस सूत्र के द्वारा संख्यात व असंख्यात का प्रतिषेध किया गया है। अनन्त के भी तीन प्रकार है। उनमें से इस अनन्त में ये जीव-राशियां स्थित हैं ; इसके ज्ञापनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं।
उपर्युक्त जीव-काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी और कार्मणकाययोगी जीव काल की अपेक्षा अनन्तानन्त अवसर्पिणी उत्सपिणियों से अपहृत नहीं होते हैं । ९२
____ अस्तु-इस सूत्र के द्वारा परीतानन्त, युक्तानन्त और जघन्य अनन्त का प्रतिषध किया गया है। क्योंकि, उनमें अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सपिणियां का अभाव है। अब दो अनन्तानन्तों में से एक के प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं ।
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