________________
( २०८ )
तिष्णि रज्जुमेत्तं गंतूण तदो साद्धदसरज्जुणि अधो कंडुज्जुवं गंतूण तदो संमुहं चदुरज्जुमेत्तं आगंतूण कोणदिसाठिदलोगपेरंतसुहुमवाउका इएस उपज्जमानस्स तिणि विग्गहा होंति ।
कार्मणका योगियों में मिथ्यादृष्टि जीव नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल होते हैं । २१७ ॥
क्योंकि, सभी कालों में विग्रहगति में विद्यमान जीवों के विरह का अभाव है ।
एक जीव की अपेक्षा उक्त जीवों का जघन्यकाल एक समय है । २१८ ।
-
अस्तु – जैसे – एक मिथ्यादृष्टि जीव, विग्रहगति नामकर्म के वश से एक विग्रह वाले मारणान्तिकसमुद्घात को प्राप्त हुआ । पुनः अन्तर्मुहूर्त से छिन्नायुष्क होकर बांधी हुई आयु के वश से उत्पन्न होने के प्रथम समय में कार्मणकाययोगी हुआ । पुनः द्वितीय समय में औदारिक मिश्रकाययोग को, अथवा वैक्रियिकमिश्रकाययोग को प्राप्त हुआ । इस प्रकार से एक समय उपलब्ध हुआ ।
एक जीव की अपेक्षा कार्मणकाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवों का उत्कृष्टकाल तीन समय है । २१९ ।
अस्तु – जैसे - एक सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव अधस्तन सूक्ष्म वायुकायियों में तीन विग्रह वाले मारणान्तिकसमुद्घात को प्राप्त हुआ । पुन: अन्तर्मुहूर्त से छिन्नायुष्क होकर उत्पन्न होने के प्रथम समय से लगाकर तीन विग्रहों में तीन समय तक कार्मणकाययोगी होकर चौथे समय में औदारिकमिश्रकाययोग को प्राप्त हो गया ।
शंका- सूक्ष्म एकेन्द्रियों में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्मएकेन्द्रिय जीव के तीन विग्रह होते हैं, यह नियम कैसे बना ।
समाधान - यद्यपि इस विषय में कोई नियम नहीं है, तो भी संभावना की अपेक्षा यहाँ पर सूक्ष्म केन्द्रियों का ग्रहण किया है । अतः सूक्ष्मएकेन्द्रियों में उत्पन्न होने वाले बादरए केन्द्रिय या सूक्ष्म एकेन्द्रिय अथवा त्रसकायिक जीव ही तीन विग्रह करते हैं । यह नियम ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि, यही उपदेश आचार्य परम्परा से आया हुआ है ।
अब तीन विग्रह करने की दिशा को कहते हैं - ब्रह्मलोकवर्ती प्रदेश पर वामदिशा सम्बन्धी लोक के पर्यन्त भाग से तिरछे दक्षिण की ओर तीन राजुप्रमाण जाकर पुनः साढे दस राजु नीचे की ओर बाण के समान सीधी गति से जाकर पश्चात् सामने की ओर चार राजुप्रमाण आकर कोणवर्ती दिशा में स्थित लोक के अन्तवर्ती सूक्ष्मवायुकायिकों में समुत्पन्न होने वाले जीव के तीन विग्रह होते हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org