________________
( 31 )
अर्थात् चौदह मार्गणाएं हैं - गति, इन्द्रिय, काय, जोग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्य, सम्यक्त्व, सन्नी और आहार ।
योग के भेद
तिविहे जोगे पण्णत्ते, तंजहा - मणजोगे, वइजोमे, कायजोगे । एवं पेरइयाणं विगलिदियवज्जाणं जाव वैमाणियाणं ।
तिविहे पओगे पण्णत्ते, तंजहा – मणपओगे, वइपओगे, कायपओगे |
विगलियवज्जाणं जाव तहा पओगोवि ।
तिविहे करणे पण्णत्ते, तंजहा – मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे । एवं विगलिदियवज्जं जाव वैमाणियाणं ।
-ठाण० स्था ३ । उ १ । सू १३, १४, १५
योग तीन प्रकार का है
१ – मनोयोग, २ – वचनयोग और ३ - काययोग | विकलेन्द्रियों ( एक, दो, तीन, चार इन्द्रियों वाले जीवों ) को छोड़कर शेष सभी दंडकों में तीनों ही योग होते हैं । प्रयोग तीन प्रकार का है
१ – मनः प्रयोग, २ -- वचनप्रयोग और ३ - कायप्रयोग । विकलेन्द्रियों (एक, दो, तीन, चार इन्द्रिय वाले जीवों ) को छोड़कर शेष सभी दंडकों में तीनों ही प्रयोग होते हैं । करण तीन प्रकार का है
----
जहा जोगो
१ - मनःकरण, २ – वचनकरण, ३ – कायकरण | विकलेन्द्रियों ( एक, दो, तीन, चार इन्द्रिय वाले जीवों ) को छोड़कर शेष सभी दंडकों में तीनों ही करण होते हैं । योग और वर्गणा
भासमणवगाणादो कमेण भासामणंतु कम्मादो । अविहम्मदव्वं होदि त्ति जिणेहि णिद्दिट्ठ ॥
टीका - भाषावर्गणास्कन्धैश्चतुर्विधभाषा भवन्ति । कार्मणवर्गणास्कन्धैरष्टविधं कर्मेति जिनैर्निर्दिष्टम् ।
Jain Education International
भाषा वर्गणा के स्कन्धों से चार प्रकार की भाषा होती है । मनोवर्गेणा के स्कंधों
से द्रव्य मन होता है और कार्मणवर्गणा के स्कंधों से आठ प्रकार के कर्म होते हैं । कहा है
-- गोजी० गा० ६०८
मनोवर्गणास्कन्धैः द्रव्यमनः,
निव्वाणगमणकाले
केवलिणोद्धनिरुद्धजोगस्स ।
सुहुम किरियानिट्ठि तइयं तणुकायकिरियस्स ||
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org