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टीका-मिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्टीणो देवा णेरइया वा मण- वचिजोगे द्विदा कायजोगिणो जादा । सव्वुक्कस्समंतो- मुहुत्तमच्छिय अण्णजोगिणो जादा । लद्धमंतोमुहुत्तं ।
सास सम्मादिट्ठी ओघं ।
- षट्० खण्ड ० १ । ५ । सू १९९ । ४ । पृष्ठ ० ४२६
टीका - णाणाजीव पडुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण छ आवलियाओ, इच्चे देहि ओधसासणादो भेदाभावा ।
सम्मामिच्छादिट्टीणं मणजोगिभंगो ।
- षट्० खण्ड ० १ । ५ । प्तू २०० । पु ४ । पृष्ठ ० ४२६
टीका - णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एयसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगो समओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तमिच्चेएग मणजोगिसम्मामिच्छादिट्ठीहिंतो वेउब्विय कायजोगिसम्मामिच्छादिट्ठीणं विसेसाभावा ।
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वैकिकाययोगियों में मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल होते हैं । १९६ ।
क्योंकि, सभी कालों में वैक्रियिककाययोगवाले मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवों की परम्परा के विच्छेद का अभाव है ।
एक जीव की अपेक्षा उक्त जीवों का जघन्यकाल एक समय है । १९७ ।
जैसे कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव मनोयोग अथवा वचनयोग में विद्यमान था । वह उस योग के काल के क्षय हो जाने से वैक्रियिककाययोगी हो गया । तब वह एक समय वैक्रियिककाययोग के साथ दृष्टिगोचर हुआ । द्वितीय समय में मरा और अन्य योग को प्राप्त हो गया । अथवा मरण के बिना सम्यग्मिथ्यादृष्टि या असंयतसम्यग्दृष्टि हो गया । अथवा सासादनसम्यग्दृष्टि या सम्यग्मिध्यादृष्टि या असंयतसम्यग्दृष्टि कोई जीव काययोग के काल में एक समय अवशेष रहने पर, मिथ्यादृष्टि हो गया और द्वितीय समय में अन्य योग को प्राप्त हुआ । इस प्रकार से एक समय लब्ध होता है । यहाँ पर व्याघात की अपेक्षा एक समय नहीं पाया जाता है, क्योंकि काययोग की अपेक्षा कथन हो रहा है ( व्याघात जो मनोयोग और वचनयोग में पाया जाता है ) । इसी प्रकार असंयतसम्यग्दृष्टि जीव के भी एक समय की प्ररूपणा तीन प्रकार से करनी चाहिए ।
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