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( १८९ ) टोका-एदं सुत्तं सुगम, मणजोगे णिरुद्ध पवंचेण परुविदत्तादो। णवरि मरण-वाघादा सम्मामिच्छादिट्ठिअसंजदसम्मादिट्ठीणं णत्थि । सासणसम्मादिट्ठिसंजदासंजद-पमत्तसंजदाणं वाघादेण एगसमओ णत्थि, मरणेण पुण अत्थि ।
__सासादनसम्यगदृष्टि गुणस्थान से लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक काययोगियों का काल मनोयोगियों के समान है।
यह सूत्र सुगम है। क्योंकि, मनोयोग के निरुद्ध करने पर पहले प्रपंच से (विस्तार से) प्ररूपण किया जा चुका है। विशेष बात यह है कि काययोगी सम्यगमिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टियों के मरण और व्याघात नहीं होते हैं। तथा काययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत और प्रमत्तसंयतों के व्याघात की अपेक्षा एक समय नहीं होता है, किन्तु मरण की अपेक्षा एक समय होता है । •०३ औदारिककाय योगी जीवों की काल स्थिति
ओरालियकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति, गाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा।
षट् खण्ड ० १ । ५ । सू १७८ । पु ४ । पृष्ठ० ४१७ टोका–कुदो? ओरालियकायजोगिमिच्छादिट्ठिसंताणस्स सव्वद्धासु वोच्छे
दाभावा।
एगजीवं पडुच्च जहणेण एगसमयं ।
-षट्० खण्ड० १ । ५ । सू १७९ । पु ४ । पृष्ठ० ४१६ टोका-एत्थ मरण-गुण-जोगपरावत्तीहि एगसमयो परुवेदव्यो। वाघादेणं एगसमओ ण लब्भदि, तस्स कायजोगाविणाभावित्तादो।
उक्कस्सेण वावीसं वाससहस्साणि देसूणाणि ।
--षट् खण्ड० १।५ । सू १८० । पु ४ । पृष्ठ० १४८ टोका-तं जधा-एगो तिरिक्खो मणुस्सो देवो वा वावीससहस्सवासाउटिदिएसु एइदिएसु उववण्णो। सव्वजहण्णण अंतोमुत्तकालेण पत्ति गदो। ओरालियअपज्जतकालेणूणवावीसवाससहस्साणि ओरालियकायजोगेण अच्छिय अण्णजोगं गदो। एवं देसूणवावीसवाससहस्साणि जादाणि। अधवा देवो ण उप्पादेदव्यो, तस्स जहण्णअपज्जत्तकालाणुवलंभा। सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति मणजोगिभंगो।
-षद् खण्ड० १। ५ । सू १८१ । पु ४ । पृष्ठ० ४१६
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