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क्षपक जीवों की मरण और व्याघात के बिना योगपरिवर्तन और गुणस्थानपरिवर्तन इन दोनों का आश्रय लेकर ही एक समय की प्ररूपणा करना चाहिए ।
उक्त जीवों का उत्कृष्टक
वह इस प्रकार है-अविवक्षित योग में स्थित चारों उपशामक और क्षपक जीव उस योग के कालक्षय से विवक्षित योग को प्राप्त हुए। वहां पर अंतर्मुहूर्त तक रह करके पुनरपि अविवक्षित योग को प्राप्त हो गए। इस प्रकार से अंतर्मुहूर्तकाल प्राप्त हो गया।
उक्त जीवों का उत्कृष्टकाल अंतर्मुहूर्त है ।
अस्तु यहाँ अंतर्मुहूर्त की प्ररूपणा जान करके करना चाहिए। यहाँ पर एक समय संबंधी विकल्पों में प्ररूपण करने के लिए यह गाथा है
मिथ्यादृष्टादि गुणस्थानों में क्रमशः ग्यारह, छः, सात, ग्यारह, दस, नो, आठ, पांच, पांच, पांच, तीन, दो, दो, दो, और एक, इतने एक समय संबंधी प्ररूपणा के विकल्प होते हैं-११, ६, ७, ११, १०, ९, ८, ५, ५, ५, ३, २, २, २, १ । .०२ काययोगीजीवों की काल स्थिति
कायजोगीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होंति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा।
-षट् खण्ड० १ । ५ । सू १७४ । पु ४ । पृष्ठ ० ४१५ । ६ टीका-कुदो ? सव्वद्धासु कायजोगिमिच्छादिट्ठीणं विरहाभावा।
एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमयं ।
-षट् खण्ड० १ । ५ । सू १७५ । पु ४ । पृष्ठ• ४१६ टोका-तं जधा-एगो सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्माविट्ठी संजदासजदो पमत्तसंजदो वा कायजोगद्धाए अच्छिदो। तिस्से एगसमयावसेसे मिच्छादिट्ठी जादो। कायजोगेण एगसमयं मिच्छत्तं दिद। विदियसमए अण्णजोगं गदो। अधवा मणवचिजोगेसु अच्छिदस्स मिच्छादिहिस्स तेसिमद्धाक्खएण कायजोगो आगदो। एगसमयं कायजोगेण सह मिच्छत्तं दिटुं। विदियसमए सम्मामिच्छत्तं वा असंजमेण सह सम्मत्तं वा संजमासंजमं अप्पमत्तभावेण संजमं वा पडिवण्णो। लद्धो एगसमओ। एत्थ मरण-वाधादेहि एगसमओ णत्थि। कुदो ? मुदे वाघाविदे वि कायजोगं मोत्तण अग्णजोगाभावा।
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