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वैक्रिय काययोगी स्वस्थान और समुद्घात से लोक के असंख्यातवें भाग में रहते हैं ।
अस्तु स्वस्थान- स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदों से वैक्रियिककाययोगी जीव तीन लोकों के असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग में और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । क्योंकि यहाँ ज्योतिषी राशि की प्रधानता है। मारणान्तिकसमुद्घात को अपेक्षा तीन लोकों के असंख्यातवें भाग में तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोक की अपेक्षा असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । यहाँ अपवर्तन जानकर करना चाहिए ।
वैक्रियिककाययोगियों के उपपादपद नहीं होता क्योंकि, वैक्रियिककाययोग के साथ उपपादपद का विरोध है ।
• ०६ वैक्रियमिश्र काययोगी कितने क्षेत्र में
defore मिस कायजोगी सत्थाणेण केवडिखेत्ते ?
टोका - सुगमं ।
- षट्० खण्ड० २ । ६ । सू ६२ । पु ७ । पृष्ठ० ३४४
लोगस्स असंखेज्जदिभागे ।
- षट्० खण्ड० २ । ६ । सू ६३ । पु ७ । पृष्ठ० ३४४
टोका - एदस्स अत्थो - तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जाबो असंखेज्जगुणे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे । कुदो ? देवरासिस्स संखेज्जवि - भागमेत्तवेउब्विय मिस्सकायजोगिदव्वलंभादो ।
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समुग्धाद उववादा णत्थि ।
- षट्० खण्ड० २ । ६ । सू ६४ । पु ७ । पृष्ठ० ३४४
टीका - वेउन्नियमिस्सेण सह एदेसि विरोहादो । होदु मारणंतियउवादेहि सह विरोहो, ण बेयण- कसायसमुग्धादेहि । तम्हा वेउव्वियमिस्सम्मि समुग्धादो णत्थि त्ति ण घडदे ? एत्थ परिहारो वुच्चदे - सत्थाणखेत्तादो वाचयदुवारेण लोगस्स असंखेज्जदिभागेण वेयणकसाय- वे उब्विय-विहारख दिसत्याणतेजाहारखेत्ताणि अपुधभूदत्तादो तत्थेव लोणाणि त्ति एदाणि एत्थ खुद्दाबंधे परिग्गहिदाणि । तदो मारणंतियमेक्कं चेव केवलिसमुग्धादेण सहिदं एत्थ समुग्धादणिसे घेप्पदि । सो च समुग्धादो एत्थ णत्थि तेणेसो ण दोसो त्ति । अधवा बेयण-कसाय-वेउन्थिय-तेजाहाराणं पि एत्थ खुद्द बंधे अस्थि समुग्धादववएसो, किंतु ण ते पहाणं, मारणंतियखेत्तावो तेसिमहियखेत्ताभावादो । तदो पहाणं
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