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( १७२ ) संखेज्जदिभागो फोसिदो। मारणंतिएण चदुण्णं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणो।
उववादं पत्थि।
-षट् खण्ड ० २ । ७ । सू १२३ । पु ७ । पृष्ठ० ४१९ टोका-कुदो ? अच्चताभावेण ओसारिदत्तादो।
आहारककाययोगी जीव स्वस्थान और समुद्घात पदों से लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं।
अस्तु यहाँ वर्तमानकाल की अपेक्षा स्पर्शन का निरूपण क्षेत्र प्ररूपणा के समान है । अतीतकाल की अपेक्षा स्वस्थान-स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनास मुद्घात और कषायसमुद्घात पदों से आहारककाययोगी जीवों ने चार लोकों के असंख्यातवें भाग और मानुषक्षेत्र के संख्यातवें भाग का स्पर्श किया है। मारणान्तिकसमुद्घात से चार लोकों के असंख्यातवें भाग और मानुषक्षेत्र से असंख्यातगुणे क्षेत्र का स्पर्श किया है ।
आहारककाययोगी जीवों के उपपादपद नहीं होता क्योंकि वह अत्यन्ताभाव से निराकृत है। .०८ आहारकमिश्र काययोगी का क्षत्र-स्पर्श आहारमिस्सकायजोगी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ?
-षट् खण्ड० २ । ७ । सू १२४ । पु ७ । पृष्ठ० ४१९ टीका-सुगमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागो।
-षट्० खण्ड ० २ । ७ । सू १२५ । पु ७ । पृष्ठ ० ४१९ टीका-एत्थ वट्टमाणस्स खेत्तभंगो। अदौदेण चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागो फोसिदो। विहारवदिसत्थाणं णत्थि ।
समुग्घाद-उववादं णस्थि।
-षट् खण्ड ० २ । ७ । सू १२६ । पु ७ । पृष्ठ० ४१९ टोका–कुदो ? अच्चताभावेण ओसारिदत्तादो।
आहारकमिश्रकाययोगी जीव स्वस्थानों पदों से लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं।
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