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________________ ( १४७ ) कार्मणका योगियों में मिध्यादृष्टि जीव ओघ मिथ्यादृष्टि के समान सर्वलोक में रहते हैं । अस्तु स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और उपपाद - इन पदों से प्राप्त कर्मणका योगी मिथ्यादृष्टिजीव चूंकि सर्वत्र सर्वकाल में पाये जाते हैं अतः वे सर्वलोक में रहते हैं । का काययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव ओघ के समान लोक के असंख्यायवें भाग में रहते हैं । अस्तु इन दोनों गुणस्थानों को प्राप्त कामंणकाययोगी राशियां चूंकि सामान्य लोकादि चार लोकों के असंख्यातवें भाग में और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहती है अतः सूत्र में 'ओघ' ऐसा पद कहा गया है । का काययोगी-सयोगिकेवली भगवान लोक के असंख्यातवें भागों में और सर्वलोक में रहते हैं । • ३६ सयोगी जीवों की क्षेत्र - स्पर्शना ०१ पंचमनोयोगी तथा पंचवचनयोगी की क्षेत्र - स्पर्शना जोगाणुवादेण पंचमणजोगि पंचवचिजोगीसु मिच्छादिट्ठीहि केवडियं खेसं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो । - षट् ० ० खण्ड ० १ । ४ । सू ७४ । पु ४ । पृष्ठ० २५५ टीका - एदं सुत्तं वट्टमाणकालमस्सिदृण द्विदभिदि एदस्स परूवणं कोरमाणे जधा खेत्ताणिओगद्दारे पंचमणवचिजोगिमिच्छादिट्ठीणं परूवणा कदा, तथा एत्थ वि मंदबुद्धिसिस्स संभालणट्ठ परूवणा कादव्वा । अट्ठ चोहसभागा देणा, सव्वलोगो वा । - षट्० खण्ड ० १ । ४ । सू ७५ । पु ४ । पृष्ठ० २५५ टीका-पंचमण-पंचवचिजोगि मिच्छादिट्ठीह सत्याणसत्थाणपरिणदेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, माणुस खेत्तादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । एत्थ सत्थाणखेत्ताणयणविधाणं जाणिय कादव्वं । एसो 'वा' सद्दसूचिदत्थो । विहार- बेदण- कसाय वेउव्वियपरिणदेहि अट्ठ चोहसभागा देसूणा पोसिदा । घणलोगमट्ठभागूणते दालीसरूवेहि छिण्णेगभागो, अधोलोगं साद्धचउव्वी सरूवेहि छिण्णेगभागो, उड्डलोगमट्टभागूणसाद्धद्वारस रूवेहि छिण्णेग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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