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( १४६ ) .०७ आहारककाययोगी तथा आहारकमिश्र-काययोगी का अवस्थान
आहारकायजोगीसु आहारमिस्सकायजोगीसु पमत्तसंजदा केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे।
-षट् खण्ड० १ । ३ । सू ३९ । पु ४ । पृष्ठ० १०९ टीका-एवस्स अत्थो-सत्थाण-विहारवदिसत्थाणपरिणद-पमत्तसंजदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, माणुसखेत्तस्स सखेज्जदिभागे। मारणतिय. समुग्धादगदा चदुण्हं लोगाणम-संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे। सेसपदाणि पत्थि। आहारमिस्सकायजोगिणो पमत्तसंजदा सत्थाणगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागे।
आहारक-काययोगियों में और आहारकमिश्र-काययोगियों में प्रमत्त-संयत गुणस्थानवर्ती जीव लोक के असंख्यातवें भाग में रहते हैं ।
अस्तु स्वस्थान-स्वस्थान और विहारवत्स्वस्थान इन दोनों पदों से परिणत आहारक काययोगी प्रमत्त-संयत सामान्यलोकादि चार लोकों के असंख्यातवें भाग में और मानुष-क्षेत्र के संख्यातवें भाग में रहते हैं। मारणान्तिक समुद्घातगत आहारक काययोगी सामान्यलोकादि चार लोकों के असंख्यातवें भाग में और अढाई द्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं ।
आहारक-काययोगी प्रमत्त-संयत के उक्त तीन पदों के सिवाय शेष सात पद नहीं होते हैं। स्वस्थानगत आहारकमिश्र-काययोगी प्रमत्त-संयत सामान्यलोकादि चारों लोकों के असंख्यातवें भाग में और मानुष-क्षेत्र के संख्यातवें भाग में रहते हैं । •०८ कार्मणकाययोगी का अवस्थान
कम्मइयकायजोगीसु मिच्छाइट्ठी ओघं ।
-षट्० खण्ड ० १ । ३ । सू ४० । पु ४ । पृष्ठ० ११० टोका-सत्थाण-वेदण-कसाय-उववादगदा कम्मइयकायजोगिमिच्छादिद्विणो जेण सव्वत्थ सव्वद्ध होति, तेण सव्वलोगे वुत्ता।
सासणसम्मादिट्ठी असंजवसम्माइट्ठी ओघं ।
-षट् खण्ड० १ । ३ । सू ४१ । पु ४ । पृष्ठ० ११० टीका-एदे दो वि रासोओ जेण चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइजादो असंखेज्जगुणे खेत्ते अच्छंति, तेण सुत्ते ओधमिदि वुत्तं । सजोगिकेवली केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जेसु भागेसु सव्वलोगे वा।
-षट्० खण्ड ० १ । ३ । सू ४२ । पु ४ । पृष्ठ० १११ टोका-सुगममेदं सुत्तं।
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