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मत्थि उववादजोगट्टाणाणि एयंताणुवड्डिजोगट्ठाणाणि च । सत्तण्णं णिव्वत्तिपज्जत्तयाणमत्थि परिणामजोगट्टाणाणि चेव । परूवणा समत्ता ।
संपहि पमाणं वुच्चदे । तं जहा - एदेसि वृत्तसव्वजीवसमासाणं उववादजोगट्टाणाणं एयंताणुव डिजोगट्टाणाणं च पमाणं सेडीए असंखेज्जदिभागो । पमाण
परूवणा गदा ।
अप्पा बहुगं (दुविहं ) जोगट्ठाणप्पा बहुगं जोगविभागपडिच्छेदप्पा बहुगं चेदि । तत्थ जोगट्टाणप्पा बहुगं वत्तइस्लामो । तं जहा- सत्तष्णं लद्धिअपन्नताणमुववादजोगट्टाणाणि । तेसिमेगताणुव डिजोगट्टाणाणि असंखेज्जगुणाणि । परिणामजोगट्टाणाणि असं खेज्जगुणाणि । सत्तण्णं णिव्वत्तिअपज्जत्तजीवसमासाणं सव्वत्थोवाणि उववादजोगट्टाणाणि । एगंताणुवड्डिजोगट्टाणाणि असंखेज्जगुणाणि । सत्तण्णं णिव्वत्तिपज्जत्ताणं णत्थि अप्पाबहुगं, परिणामजोगट्ठाणाणि मोतूण तत्थ अणस जोगद्वाणाणमभावादो। सव्वत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्ज - दिभागो । एवं जोगट्ठाणप्पा बहुगं समत्तं ।
-षट्० ४ । २ । ४ । १७३ । पृष्ठ ४०३ । ४ । षु १०
इस प्रकार प्रत्येक जीव के योग का गुणकार पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है ।
पूर्वोक्त समस्त योग- स्थानों के गुणकार का प्रमाण कहा गया है । यह सूत्र स्वयं प्रमाण-भूत होने से किसी अन्य प्रमाण की अपेक्षा नहीं करता, क्योंकि ऐसा होने पर अनवस्था दोष का प्रसंग आता है ।
यह मूल वीणा का अल्पबहुत्व-आलाप देशामर्शक है क्योंकि, वह प्ररूपणादि अनुयोगद्वारों का सूचक है। इसलिए यहाँ प्ररूपणा प्रमाण, अल्पबहुत्व- इन तीन अनुयोग द्वारों की प्ररूपणा करनी चाहिए। उनमें प्ररूपणा को कहते हैं । वह इस प्रकार है
सात लब्ध्यपर्याप्त, जीव समासों के उपपाद योग-स्थान, एकांतानुवृद्धि योग-स्थान और परिणाम योग-स्थान होते हैं। सात निवृत्त्यपर्याप्त, जीव समासों के उपपाद योग-स्थान व एकांतानुवृद्धि योग-स्थान होते हैं । सात निवृत्तिपर्याप्तकों के परिणाम-योग-स्थान ही होते हैं । प्ररूपणा समाप्त हुई ।
अब प्रमाण की प्ररूपणा की जाती है- इन उक्त सब जीव-समासों के उपपादयोग स्थानों, एकांतानुवृद्धियोग-स्थानों और प्रमाण योग-स्थानों का प्रमाण जगश्रेणि के असंख्यातवें भाग मात्र है । प्रमाण की प्ररूपणा समाप्त हुई ।
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