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जीवों में - उदय भाव से तीनों योग होते हैं । शुभ योग कषायों के उपशम, क्षयक्षयोपशम से होते हैं । अतः योग औपशामिक, क्षायिक व क्षायोपशमिक भाव भी है ।
सविशेषण - ससमास - सप्रत्यय योग शब्दों में कितने ही शब्द प्रायोगिक द्रव्य और भाव योग से सम्बन्धित है ।
मरण तीन प्रकार का कहा है- बालमरण, पंडितमरण व बालपंडितमरण | बालमरण के समय शुभ व अशुभ दोनों योग होते हैं । अवशेष दोनों मरण में शुभयोग व प्रशस्त लेश्या होती है । पंडितमरण छट्ठ गुणस्थान से ग्यारहवें गुणस्थान तक व चौदहवें गुणस्थान में अयोगी, अलेली होता है तथा बालपंडितमरण केवल पांचवें गुणस्थान में होता है ।
योग आत्मप्रदेशों में ही परिणमन करता है, अन्यत्र नहीं करता है । इससे पता चलता है कि संसारी आत्मा के साथ योग के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है और वह अनादिकाल से चला आ रहा है । जीव जब तक अंतक्रिया नहीं करता है तब तक सम्बन्ध चलता रहता है और आत्मा में योगों का परिणमन होता रहता है । यद्यपि चौदहवे गुणस्थान में अयोगी हो जाता है ।
मनोयोग, वचनयोग व काययोग में 'वट्टमाण' वर्तता हुआ जीव और जीवात्मा एक है, अभिन्न है, दो नहीं है । जब जीवात्मा ( पर्यायात्मा ) योग परिणामों में वर्तता है तब वह जीव यानि द्रव्यात्मा से भिन्न नहीं है, एक है । अर्थात् वही जीव है, वही जीवात्मा है । चूंकि द्रव्यात्मा द्रव्य जीव है, अवशेष सात ( कषाय आदि ) आत्मा भाव जीव है । आत्मा आठ है - (१) द्रव्य आत्मा, (२) कषाय आत्मा, (३) योग आत्मा, (४) उपयोग आत्मा, (५) ज्ञान आत्मा, (६) दर्शन आत्मा, (७) चारित्र आत्मा और (5) वीयं आत्मा हैं ।
लेश्या और योग का अविनाभावी सम्बन्ध है । जहाँ लेश्या है वहाँ योग है । जहाँ योग है वहाँ लेश्या है । फिर भी दोनों भिन्न-भिन्न तत्त्व है । भावतः लेश्या परिणाम तथा योग परिणाम जीव परिणामों में अलग-अलग बतलाये गये हैं । अतः भिन्न है । द्रव्यतः मनोयोग तथा वाक्योग के पुद्गल चतुः स्पर्शी है तथा काय योग के पुद्गल अष्टस्पर्शी स्थूल है । लेकिन लेश्या के पुद्गल अष्टस्पर्शी तो है लेकिन सूक्ष्म है अर्थात् द्रव्य काय योग के पुद्गलों से सूक्ष्म है क्योंकि लेश्या के पुद्गलों को भावितात्मा अणगार न जान सकता है, न देख सकता है । अतः द्रव्यतः भी योग और लेश्या भिन्न भिन्न है ।
लेश्या परिणाम तथा योग परिणाम जीवोदय निष्पन्न भाव है - कहा है
"से कि तं जीवोदय निफन्ने ? अणंगविहे पन्नत्तं तं जहा-नेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से देवे, पुढविकाइए जाव तसकाइए, कोहकसाइ जाव लोभकसाइ, इत्थीवेयए पुरिसवेयए, नपुं सगवेयए, कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से, मिच्छादिट्ठी
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