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गुण ही होती है, तथापि यहां परिस्पन्दन ( कम्पन-हलन-चलन ) रूप योग की विवक्षा होने से तथा क्षयोपशम विशेष की सामथ्र्य से असंख्यातगुण होने का कथन विरुद्ध नहीं है, क्योंकि यह कोई नियम नहीं है कि असंख्यातगुण वाले का कथन विरुद्ध नहीं है, क्योंकि यह कोई नियम नहीं है कि अल्प कायवाले का परिस्पन्दन अल्प ही होता है और महाकायवाले का परिस्पन्दन बहुत ही होता है क्योंकि इससे विपरीतता भी देखी जाती है। जैसे- अल्प कायवाले का परिस्पन्दन महान् भी होता है और महाकायवाले का परिस्पन्दन अल्प भी होता है।
'३५ अंतोमुत्तमेत्ता चउमणजोगा कमेण संखगुणा
तज्जोगो सामण्णं चउवचिजोगा तदो दु संखगुणा
-गोजी० शा २६२
सत्य, असत्य, उभय और अनुभय-ये चार मनोयोगों में से प्रत्येक का काल अन्तमुहूर्त है तथापि क्रम से संख्यातगुणा है अर्थात् सत्य मनोयोग का काल सबसे स्तोक अन्तर्मुहूतं है। उससे संख्यातगुणा अन्तर्मुहूर्त असत्य मनोयोग का काल है। उससे संख्यातगुणा अन्तर्मुहूतं उभय मनोयोग का काल है। उससे संख्यातगुणा अन्तर्मुहूर्त अनुभय मनोयोग का काल है। वह भी अन्तर्मुहूर्त मात्र ही है। इन चारों योगों के काल का जोड़ सामान्य मनोयोग का काल है । टोका–सत्यासत्योभयानुभयाख्याः ! चत्वारो मनोयोगाः अन्तर्मुहूर्तमानाः प्रत्येक मन्तमुहूर्तकालवृत्तय: तथापि क्रमेण संख्येयगुणा भवत्ति
एवं कालानां युतिः सामान्यं सामान्यमनोयोग कालो भवति । अयमप्यन्तर्मुहूर्तमान एव। - तज्जोगो सामण्णं चउवचिजोगा तदो दु संखगुणा।
-गोजी• गा २६२ । उत्तरार्ध ___टीका-ततः सामान्य मनोयोगकालात्तु पुनः ते चत्वारो वाग्योगकाला अपि क्रमेण संख्यातगुणाः ; तथापि प्रत्येकमन्तमुहूर्तमात्रा एव–एषां युतिः xxx अपि अन्तर्मुहूर्तमात्री भवति ।
___सामान्य मनोयोग के काल से चारों वचनयोगों का काल भी क्रम से संख्यातगुणा है तथापि प्रत्येक का काल अन्तर्मुहूर्त मात्र ही है अर्थात् चारों मनोयोग के कालों के जोड़ से संख्यातगुणा अन्तर्मुहूर्त सत्यवचन योग का काल है। उससे संख्यातगुणा अन्तर्मुहूर्त असत्यवचन का काल है। उससे संख्यातगुणा उभय वचन का काल है। उससे संख्यातगुणा अनुभय वचन का योग काल है। इन सबका योग भी अन्तर्मुहूर्त मात्र है।
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