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२४ बेइदियस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे २५ एवं तेइ दियस्स वि पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे २६ चरिवियस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे २७ असण्णिपंचिदियस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे २८ एवं सण्णिपंचिदियस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे।
-भम० श २५ । उ १ । सू ३
१ सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त का जघन्य योग सबसे अल्प है। २ उससे बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। ३ उससे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। ४ उससे त्रीन्द्रिय अपर्याप्त का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। ५ उससे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। ६ उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। ७ उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। ८ उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। ९ उससे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यातगुणा है । १० उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। ११ उससे बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। १२ उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। १३ उससे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। १४ उससे द्वीन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। १५ उससे त्रीन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। १६-१८ उससे चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त और संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा है। १९ उससे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। २०.२३ इसी प्रकार श्रीन्द्रिय अपर्याप्त, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त, असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त का उत्कृष्ट योग उतरोत्तर असंख्यातगुणा है। २४ उससे द्वीन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। २५ इसी प्रकार त्रीन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। २६ उससे चतुरिन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। २७ उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। २८ उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है।
विनेचन-इनमें सूक्ष्म अपर्याप्त एकेन्द्रिय का जघन्य योग सबसे अल्प है क्योंकि उनका शरीर सूक्ष्म और अपर्याप्त होने से ( अपूर्ण होवे के कारण ) दूसरे सभी जीवों के योगों की अपेक्षा उसका योग सबसे अल्प होता है और यह कार्मण शरीर द्वारा औदारिक शरीर ग्रहण करने के प्रथम समय में होता है। तत्पश्चात् समय-समय योगों की वृद्धि होती है और उत्कृष्ट योग तक बढ़ता है। अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय का जघन्य योग, पूर्वोक्त की अपेक्षा असंख्यातगुण होता है। बादर होने से उसका योग असंख्यातगुण बड़ा होता है। इसी प्रकार आगे भी जानना चाहिए ।
यद्यपि पर्याप्त तेइन्द्रिय की उत्कृष्ट काया की अपेक्षा पर्याप्तक बेइन्द्रियों की काया तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट काया, संख्यात योजन होने से संख्यात
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