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( ११७ ) टोका–कुदो ? बोइदियपज्जत्तजीवाणं गहणादो।
वचिजोगी विसेसाहिया ॥१२४॥ टीका केत्तिमेत्तेण ? सच्च-मोस-सच्चमोसवचिजोगिमेत्तेण ।
अजोगी अणंतगुणा ॥१२५॥ टोका–को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो।
कम्मइयकायजोगी अणंतगुणा ॥१२६॥ टोका–को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहितो सिद्धहितो सव्वजीवाणं पढमवग्गमूलादो वि अणंतगुणो कुदो ? अंतोनुहुतगुणि अजोगिरासिपमाणेणोवट्टिदसव्वजीवरासिमेत्तत्तादो।
ओरालियमिस्सकायजोगी असंखेज्जगुणा ॥१२७॥ टोका–को गुणगारो ? अंतोमुहुत्तं ।
ओरालियकायजोगी संखेज्जगुणा ॥१२८॥
कायजोगी विसेसाहिया ॥१२९॥ टोका-केत्तियमेतो विसेसो ? सेसकायजोगिमेत्तो।
-षट्० भा २ । ११ । सू १०७-२८ । पु७ । पृ० ५५०-५४ योगमार्गणा के अनुसार मनोयोगी सबसे स्तोक हैं, क्योंकि वे देवों के संख्यातवें भाग रूप हैं। इनसे वचनयोगी संख्यातगुणा हैं, क्योंकि प्रतरांगुल के संख्यातवें भाग रूप वचनयोगी के अवहारकाल से संख्यात प्रतरांगुल रूप मनोयोगी के अवहारकाल को भाजित करने पर संख्यात रूप उपलब्ध होता है। इनसे अयोगी अनन्तगुणा हैं, क्योंकि वे अभव्यसिद्धिक जीवों से अनन्तगुणा हैं। इनसे काययोगी अनन्तगुणा हैं। इसका गुणकार अभव्यसिद्धिकों, सिद्धों और सर्वजीवों के प्रथम वर्गमूल से भी अनन्तगुणा है ।
अन्य प्रकार से योगमार्गणा के अनुसार अल्पबहुत्व का निरूपण निम्न प्रकार से किया जाता है।
आहारकमिश्र काययोगी सबसे स्तोक हैं। इनसे आहारक काययोगी संख्यातगुणा हैं। इसका गुणकार दो रूप है। इनसे वैक्रियमिश्र काययोगी असंख्यातगुणा हैं। इसका गुणकार जगप्रतर का असंख्यातवां भाग रूप है। इनसे सत्यमनोयोगी संख्यातगुणा हैं, क्योंकि यह स्वाभाविक है। इनसे मृषामनोयोगी संख्यातगुणा हैं, क्योंकि सत्यमनोयोगी के काल की अपेक्षा मृषामनोयोग का काल संख्यातगुणा है, अथवा सत्यमनोयोग के परिणमन वारों की की अपेक्षा मृषामनोयोग का परिणमन बार संख्यातगुणा होता है। इनसे सत्यमृषामनोयोगी संख्यातगुणा हैं। यहाँ पर पूर्व समान दोनों प्रकारों से संख्यातगुणत्व का कारण जानना चाहिए। इनसे असत्यमृषामनोयोगी संख्यात गुणा हैं। यहाँ पर भी पूर्वोक्त
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