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योग कोश विषयांकन हमने ०४०५ किया है। इसका आधार यह है कि सम्पूर्ण जैन वाङ्मव को १०० भागों में विभाजित किया गया है ( देखें मूलवर्गीकरण सूची पृ० ८) इसके अनुसार जीव परिणाम का विषयांकन ०४ है। जीव परिणाम को सौ भागों में विभक्त किया गया है ( देखें जीव परिणाम वर्गीकरण सूची पृ० ११) इसके अनुसार योग का विषयांकन ०५ होता है। अतः योग का विषयांकन हमने ०४०५ किया है। योग के अन्तर्गत आनेवाले विषयों में आगे दशमलव का चिह्न है।
योग कोश भी लेश्या कोश की तरह हमारी कोश परिकल्पना का परिक्षण (ट्रायल) है। इस परिकल्पना में पुष्ठता तथा हमारे अनुभव में यथेष्ठ समृद्धि हुई है। योग, लेश्या, भाव, अध्यवसाय, क्रिया तथा परिणाम आदि जैन आगमों के परिभाषिक शब्द है ।
पर्याय की अपेक्षा जीव अनंत परिणामी है, फिर भी आगमों में जीव के दस ही परिणामों का उल्लेख है । (स्थानांग स्था १०, पण्ण पद १३) जीव परिणाम के दस परिणामों को प्राथमिकता देकर ग्रहण किया गया है लेकिन साथ ही कर्मों के उदय से वा अन्यथा होनेवाले अन्य अनेक प्रमुख परिणामों को वर्गीकरण में स्थान दिया है। इनमें से उत्पाद-व्ययध्रौव्य आदि कई विषय तो अन्यान्य कोशों में भी समाविष्ट होने योग्य है।
योग शाश्वत भी है, अशाश्वत भी है। आहारककाय योग व आहारकमिश्र काययोम अशाश्वत है, बाकी तेरह योग शाश्वत है, दिगम्बर मतानुसार वैक्रियमित्र काय योग को अशाश्वत माना है बाकी बारह योग शाश्वत माने हैं ।
प्राचीन आचार्यों ने योग और लेश्या के विवेचन में निम्नलिखित परिभाषाओं पर विचार किया है।
१-लेश्या योग परिणाम है-योग परिणामो लेश्या । २-लेश्या कर्म निस्यद रूप है-कर्म निस्यन्दो लेश्या ।
३-लेश्या कषायोदयसे अनुरंजित योग प्रवृत्ति है-कषायोदयरंजिता योगप्रवृत्तिबैश्या।
४-योग और लेश्या-नाम कर्म व मोहनीय कर्म का उदय भाव है। ___ अस्तु-लेश्यस्व व योगीत्व जीवोदयनिष्पन्न भाव है। अतः कर्मों के उदय से भी जीव के मन-वचन काय के योग होते हैं ।
द्रव्य योग : पोद्गलिक है अतः अजीवोदय निष्पन्न होना चाहिए-पओगपरिणामए वण्ये, गंधे, रसे, फासे x x x। जहाँ परिणाम शुभ होते हैं (योग परिणाम), अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं वहाँ लेश्या विशुद्धमान होती है। सयोगी के कर्मों की निर्जरा के समय परिणामों काशुभ होना,अध्यवसायों का प्रशस्त होना तथालेश्या का विशुद्धमान होना आवश्यक है। जब वैराग्य भाव प्रकट होता है तब इन तीनों में क्रमशः शुभता, प्रशस्तत्ता तथा विशुद्धता होती है। यहां परिणाम शब्द से जीव के मूल दश परिणामों में से किस परिणाम की ओर
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