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१५-कितनेक औदारिकमिश्र शरीर काय प्रयोगवाले, कितनेक आहारक शरीर काय प्रयोगवाले, कितनेक आहारकमिश्र शरीर काय प्रयोगवाले और एक कार्मम शरीर काय प्रयोगवाले होते हैं।
१६-अथवा कितनेक औदारिकमिश्र शरीर काय प्रयोगवाले, कितनेक आहारक शरीर काय प्रयोगवाले, कितनेक आहारकमिश्र शरीर काय प्रयोगवाले व कितनेक कार्मण शरीर काय प्रयोगवाले होते हैं।
इस प्रकार इस चतुः सयोगी सोलह भांमे हुए। सब इकट्ठा करने से मनुष्य-संबंधी अस्सी भांगे होते हैं। .१० वाणव्यंतर देवों में विभाग से प्रयोग ११ ज्योतिषी .१२ वमानिक .. बाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा (सू १०७९)॥ १०५४।
-पम ५ १६. वाणव्यन्तर, ज्योतिषी तथा वैमानिक देवों के विषय में असुरकुमारों की तरह जानना चाहिए। अस्तु यहाँ तीन भंग कहने चाहिए। ३२ सयोगी जीव और नियमा-भजना .०१ मनोयोगी और वचनयोगी जीव की नियमा-भजना ..२ काययोगी जीव को नियमा-भजना .०३ औदारिक काययोगी जीव को नियमा-भजना .०४ औदारिकमिश्र काययोगी जीव की नियमा-भजना .०५ वेत्रिय काययोगी जीव को नियमा-भजना ..९ कार्मण काययोगी जीव की नियमा-भजना
जोगाणुवादेण पंचमणजोगी पंचवचिजोगी कायजोगी औरालियकायजोगी भोरालियमिस्सकायजोगी वेउन्वियकायजोगी कम्मइयकायजोगी णियमा अस्थि ।
-षद खं २ । ४ । सू १० । पु ७ । पृष्ठ• २४० - योगमागंणा के अनुसार पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी, औदारिक काययोगी, औदारिकमिश्र काययोगी, वैक्रिय काययोगी और कार्मण काययोगी नियम से रहते हैं।
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