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संखेज्जदिभागे, माणुस खेत्तस्स संखेज्जदिभागे। मारणंतियसमुग्घादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जविभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे त्ति।
___ आहारक काययोगियों के क्षेत्र का निरूपण वैक्रियिक काययोगियों के क्षेत्र के समान हैं।
अस्तु- यह द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा निर्देश है। पर्यायाथिक नय की अपेक्षा निरूपण करने पर वैक्रियिक काययोगियों के क्षेत्र में यहाँ विशेषता है। वह इस प्रकार है-स्वस्थान और विहारवत्स्वस्थान क्षेत्र के परिणत आहारक काययोगी जीव चार लोकों के असंख्यातवें भाग में और मानुष क्षेत्र के संख्यातवें भाग में रहते हैं। मारणान्तिक समुद्घात को प्राप्त उक्त जीव चार लोकों के असंख्यातवें भाग में और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं।
•१० आहारकमिश्र काययोगी का समुद्घात क्षेत्र
आहारमिस्सकायजोगी वेउन्विमिस्सभंगो।
-षट० खं २ । ६ । सू ६६ । पु ७ । पृष्ठ० ३४६ टीका - एसो वि दवट्ठियणिद्दे सो, लोगस्स असंखेन्जदिभागत्तणेण दोण्हं खेत्ताणं समाणत्तं पेक्खिय पवुत्तीदो। पज्जवट्ठियणयं पडुच्च भेदो अस्थि । तंजहा आहारमिस्सकायजोगी चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागे त्ति।
आहारिकमिश्र काययोगियों का क्षेत्र वैक्रियिकमिश्र काययोगियों के समान है।
अस्तु यह भी द्रव्याथिक नय की अपेक्षा निर्देश है। क्योंकि, लोक के असंख्यातवें भागत्व से दोनों क्षेत्रों की समानता की अपेक्षा कर इसकी प्रवृत्ति हुई है। पर्यायर्थिक नय की अपेक्षा भेद है। वह इस प्रकार है-आहारकमिश्र काययोगी जीव चार लोकों के असंख्यातवें भाग में और मानुष क्षेत्र के संख्यातवें भाग में रहते हैं। ११ कार्मण काययोगी का समुद्घात क्षेत्र कम्मइयकायजोगी केवडिखेते?
-षट• खं २।६ । सू ६७ । पु ७ । पृष्ठ० ३४६ टोका-सुगम।
सव्वलोगे। -षट० खं २ । ६ । सू६८ । पु७ । पृष्ठ० ३४६
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