________________
तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे ; तेजाहारसमुग्धादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जस्स संखेज्जविभागे ; मारणंतिय समुग्धादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेजदिभागे, णर-तिरियलोहितो असंखेज्जगुणे अच्छंति । उववादं णत्थि, मणजोग-वचिजोगाणं विवक्खादो।
योग मार्मणानुसार पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी जीव स्वस्थान और समुद्घात की अपेक्षा कितने क्षेत्र में रहते हैं।
___ यहाँ स्वस्थान में दोनों स्वस्थान और समुद्घात में वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, वैक्रियिक समुद्घात, तैजस समुद्घात, आहारक समुद्घात एवं मारणान्तिक समुद्घात है, क्योंकि, उत्तर शरीर को उत्पन्न करने वाले, मारणान्तिक समुद्घात को प्राप्त जीवों के भी मनोयोग वचनयोग के होने में कोई विरोध नहीं है। मनोयोगी व वचनयोगी जीवों में उपपाद पद नहीं है क्योंकि, उनमें काययोग को छोड़ कर अन्य योगों का अभाव है।
पांचों मनोयोगी व पांचों वचनयोगी जीव उक्त पदों से लोक के असंख्यातवें भाग में रहते हैं।
अस्तु-स्वस्थान-स्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, वैक्रियिक समुद्घात को प्राप्त ये दश ही जीव तीन लोकों के असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग में और अढाई द्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं। तैजस समुद्घात व आहारक समुद्घात को प्राप्त उक्त जीव चार लोकों के असंख्यातवें भाग में और अढाई द्वीप के संख्यातवें भाग में रहते हैं। मारप्पान्तिक समुद्घात को प्राप्त उक्त जीव तीन लोकों के असंख्यातवें भाग में तथा मनुष्य तथा तिर्यग्लोक की अपेक्षा असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । उपपाद पद नहीं है। क्योंकि मनोयोग व वचनयोग की यहाँ विवक्षा है। ७ काययोगी का समुद्घात क्षेत्र औदारिकमिश्र काययोगी का समुद्घात क्षेत्र
कायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगी सत्थाणेण समुग्धादेण उववादेण केवड़िखेते?
-षट० खं २ । ६ । सू ५४ । पु ७ । पृष्ठ० ३४१ टीका-सुगममेदं।
सव्वलोए।
-षट० खं २। ६ । सू ५५ । पु ७ । पृष्ठ० ३४१ टीका-एदस्स सुत्तस्स अत्थो वुच्चदे। तं जहा-सस्थाणवेयण-कसायमारणंतिय-उववादेहि सव्वलोगे। कुदो? आणंतियादो। विहारवदिसत्थाण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org