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प्रकाशकीय स्व० मोहनलालजी बाँठिया ने, अपने अनुभवों से प्रेरित होकर एक जैन विषय कोश की परिकल्पना प्रस्तुत की तथा श्रीचन्दजी चोरडिया के सहयोग से प्रमुख आगम ग्रन्थों का मंथन करके, एक विषय सूची प्रणीत की। फिर उस विषय सूची के आधार पर जैन आगमों से विषयानुसार पाठ संकलन करने प्रारम्भ किये। यह संकलन उन्होंने प्रकाशित आगमों की प्रतियों से कतरन विधि से किया। इस प्रकार प्रायः १००० विषयों पर पाठ संकलित हो चुके हैं ।
सर्वप्रथम 'लेश्या कोश' नामक पुस्तक स्वयं ही ई. सन १९६६ में श्रीचन्दजी चोरडिया के सहयोग से प्रकाशित की। जैन दर्शन और वाङ्मय के अध्ययन के लिए जिस रूप में लेश्या कोश को अपरिहार्य बताया गया है और पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा के रूप में जिस तरह से मुक्त कंठ से प्रशंसा की गई है, यह उसकी उपयोगिता तथा सार्वजनीनता को आलोकित करने में सक्षम है।
सम्पादकों ने जैनागम एवं वाङ्मय के तलस्पर्शी गम्भीर अध्ययन द्वारा प्रसूत कोश परिकल्पना को क्रियान्वित करने तथा उनके सत्कर्म और अध्यवसाय के प्रति समुचित सम्मान प्रकट करने की पुनीत भावनावश जैन दर्शन समिति की संस्थापना महावीर जयन्ती ई० १९६९ के दिन की (३१-३-६९) गई थी। इस संस्था के द्वारा सन् १९६९ में क्रिया कोश प्रकाशित हुआ।
इसके बाद सम्पादकों ने पुद्गल कोश, ध्यान कोश, नरक कोश, संयुक्त लेश्या कोश भी पूर्ण किया जो अभी प्रकाशित नहीं हुए हैं।
जैन दर्शन समिति द्वारा श्री बांठिया ने अपने जीवन काल में श्रीचन्दजी चोरडिया के सहयोग से वर्धमान जीवन कोश का काफी संकलन कर लिया था। परन्तु २३-९-१९७६ (आश्विन बदी १५, सं० २०३३ ) में आकस्मिक स्वर्गवास हो गया। वांठियाजी के स्वर्गवास पर जैन दर्शन समिति को बहुत बड़ा धक्का लगा। श्रीचन्दजी चोरड़िया अपने धुनके पक्के व्यक्ति है। उनके स्वर्गवास के बाद 'मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास' जो कोश की कोटि के ग्रन्थ का सन् १९७७ में प्रकाशित हुआ। वर्धमान जीवन कोश, प्रथम खण्ड सन् १९८० में, वर्धमान जीवन कोश, द्वितीय खण्ड सन् १९८४ में तथा वर्धमान जीवन कोश तृतीय खण्ड सन् १९८८ में प्रकाशित हुआ। योग कोश प्रथम खण्ड १९९३ में प्रकाशित हुआ।
प्रस्तुत कोश, विद्वद् वर्ग द्वारा जितना समादृत हुआ। तथा जैन दर्शन और वाङ्मय के अध्ययन के लिए जिस रूप में इसे अपरिहार्य बताया गया और पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा के रूप में जिस तरह मुक्त-कंठ से प्रशंसा की गई, यही उसकी उपयोगिता तथा सार्वजनिनता को आलोकित करने में सक्षम है।
इसी प्रयास स्वरुप योग कोश (द्वितीय खण्ड) आपके समक्ष प्रस्तुत है। जैन दर्शन समिति ने कोश प्रकाशनों की योजना को किसी तरह की लाभवृत्ति या उपार्जन के लिए हाथ में नहीं लिया है अपितु इसका पावन उद्दश्य एक अभाव की पूर्ति करना, अर्हत् प्रवचन की प्रभावना करना तथा जैन दर्शन और वाङ्मय का प्रचार-प्रसार करना तथा
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