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टीका प्रमत्तविरते वैऋियिकयोगक्रिया आहारकयोगक्रिया च द्वो युगपन्न संभवतः । तद्यथा – कदाचिदाहारक योगमवलम्व्य प्रमत्तसंयतस्य गमनादि - किया प्रवर्ततेतदा विक्रियद्धबलेन विक्रियिकयोगमवलम्ब्य वैक्रियिकक्रिया न घटते आहारकधविक्रिययस्तस्य युगपद्वृत्तिविरोधात् । अनेक गणधरादीनां इतरधि युगपद्वृत्तिसंभवः सूचितः । x x x । कुलालदंडप्रयोगाभावेऽपि तत्संस्कारबलेन चक्रभ्रमणवत् संस्कारक्षये बाणपतनवत्क्रिया निवृत्तिदर्शनादेव संस्कारवशेन युगपदनेक क्रियावृत्तिप्रसङ्ग सति प्रमत्तविरते वैऋियिकाहारकशरीरक्रिययोः युगपत्प्रवृत्तिप्रतिषेधः आचार्येण प्ररुपितोजातः ।
प्रमत्तविरत में वैक्रियिक योग क्रिया और आहारक योग किया- ये दोनों एक साथ नहीं होती । जब आहारक योग का अवलम्बन लेकर प्रमत्तसंयत के गमनादि क्रिया होती है तब विक्रिया ऋद्धि के बल से वैक्रियिक योग का अवलम्बन लेकर वैक्रियिक क्रिया नहीं होती । क्योंकि उसके आहारक ऋद्धि और विक्रियाऋद्धि दोनों के एक साथ होने में विरोध है । इससे गणधर आदि के अन्य ऋद्धियों का एक साथ रहना सूचित किया है । तथा योग भी एक काल में अर्थात् अपने योग्य अन्तर्मुहूर्त में नियम से एक ही होता है । दो या तीन योग एक जीव में एक साथ नहीं होते हैं । ऐसा होने पर एक योग के काल में अन्य योग के कार्य रूप गमन आदि क्रिया के होने में कोई विरोध नहीं है, क्योंकि जो योग चला गया उसके संस्कार से एक योग के काल में अन्य योग की क्रिया होती है । जैसे कुम्हार दंड के प्रयोग से चाक को घुमाता है । पीछे दंड का प्रयोग नहीं करने पर भी चाक घूमता रहता है । या धनुष से छूटने पर बाण जब तक उस में है, तब तक जाता है । पीछे संस्कार नष्ट हो जाने पर गिर जाता है । इस प्रकार संस्कार के वश एक साथ अनेक योगों की क्रिया के होने का प्रसंग उपस्थित होने पर प्रमत्तविरत में वैक्रियिक और आहारक शरीर को क्रियाओं के साथ होने का निषेध आचार्य ने किया है । अर्थात् ये दोनों क्रिया प्रमत्तविरत के संस्कार वश भी एक साथ नहीं होती ।
संस्कार के बल से
पूर्व संस्कार रहता
- २४ औदारिक व औदारिक मिश्र काय योग किसके होता है । तौ योगौ द्वावपि नरतिरश्चोरेवेति
सर्वज्ञ रुक्तम् ।
- गोजी० गा० ६८१ । टीका
दारिक व औदारिक मिश्र काय योग- ये दोनों भी योग मनुष्य और तिर्यंचों में ही होते हैं - ऐसा सर्वज्ञदेव ने कहा है ।
- २५ जीव सयोगी भी होते हैं व अयोगी भी
- १ ( जीवा ) पञ्चदशयोगाः अयोगाश्च संति ।
पन्द्रह योग वाले जीव है और योग रहित जीव है ।
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- गोजी० गा० ७२८ । टीका
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