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आहारक काय योग के धारक एक समय में एक साथ उत्कृष्टतः चौप्पन्न होते हैं तथा आहारक मिश्र काय योगी एक समय में एक साथ उत्कृष्टतः सत्ताईस होते हैं ।
विशेष-उत्कृष्ट रूप से एक समय में उक्त संख्या प्रमाण जीव होते हैं, इससे कम हो सकते हैं किन्तु अधिक नहीं हो सकते। अर्थात् वह सब उत्कृष्ट रूप से एक समय में जानना चाहिए। .२३ अयोगी जीव कौन होते हैं
जेसि ण संति जोगा सुहासुहा पुण्णपावसंजणया। ते होंति अजोगिजिणा अणोवमाणंतबलकलिया ॥
---- गोजी. गा२४३ जिन आत्माओं के पुण्य-पाप रूप प्रशस्त और अप्रशस्त कर्मबंध के कारण मनवचन-काय की क्रिया शुभ और अशुभ नहीं है वे आत्मा चरम गुणस्थानवर्ती अयोगी केबली है।
विशेष—योग के आधार से जो बल होता है वह प्रतिनियत विषय वाला ही होता है। परमात्मा का बल केवल ज्ञान आदि की तरह आत्मा का स्वभाव होने से अप्रतिनियत विषय वाला होता है। •२४ एक काल में एक योग .१ जोगो वि एक्ककाले एक्केव य होदिणियमेण ।
-गोजी० गा. २४२ । उत्तरार्ध टीका तथा योगोऽपि एक्ककाले स्वयोग्यान्तमुहूर्ते एक एव नियमेन भवति द्वौ त्यो वा योगा एकजीवे युगपन्न सम्भवति। तथा सति एक योगकाले अन्ययोगरूपगमनादि क्रियाणां संभवो नामातिक्रान्त योग संस्कार जनितो न विरुध्यते।
तथा योग भी एक काल में अर्थात् अपने योग्य अन्तर्मुहूर्त में नियम से एक ही होता है। दो या तीन योग एक जीव में एक साथ नहीं होते। ऐसा होने पर एक योग के काल में अन्य योग का कार्य रूप गमनादि क्रिया के होने में कोई विरोध नहीं है क्योंकि जो योग चला गया उसके संस्कार से एक योग के काल में अन्य योग की क्रिया होती है। .२ वैक्रिय योग क्रिया तथा आहारक योग क्रिया युगपत् नहीं होती है।
वेगुन्विय आहारकिरिया ण समपमत्तविरदम्मि। लोगो वि एक्ककाले एक्केव य होदिणियमेण ॥
-गोजी. गा. २४२
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