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दो शब्द जैन आगमों में विभिन्न विषयों के क्रमबद्ध विवेचन की कमी के कारण जैन दर्शन के अध्ययन में अत्यन्त असुविधा होती है। यद्यपि भगवान महावीर ने अपने प्रवचन उस समय की जन भाषा में दिये थे जिससे आम जनता, उनके प्रवचनों से लाभान्वित हो सके लेकिन वर्तमान में जो आगम उपलब्ध है उनमें यत्र-तत्र बिखरा हुआ विवेचन मिलता है उस समय की जन भाषा ( प्राकृत ) थी। इस कारण से उसका अर्थ और भाव दोनों को समझने में बड़ी कठिनाई होती है। कुछ आचार्यों ने क्रमबद्धता लाने का प्रयास किया, जिसके उदाहरण प्रज्ञापना एवं नदी सूत्र में मिलते हैं लेकिन उनमें भी सूत्र शैली की भिन्नता के कारण विषय के प्रतिपादन में परिपूर्णता नहीं आती है। विशेषकर जैनेतर विद्वानों को आगमों का अध्ययन कर सही अर्थ ग्रहण करना कठिन है। जैसा कि मुझे मालुम हुआ स्व० मोहनलालजी बांठिया के समक्ष इस कठिनाई का प्रश्न तुलनात्मक अध्ययन करने वाले जैन व जैनेत्तर विद्वानों ने कई बार रखा। उन्होंने स्वयं ने भी जैन आगमों के अध्ययन में इस कठिनाई का अनुभव किया। इन कठिनाइयों को दूर करने की भावना से उनके मन में विचार का उद्भव हुआ कि आगमों में आये हुए परिभाषिक विषयों का संकलन करके आधुनिक शैली व आधुनिक पद्धति में सजाकर प्रकाशित किया जाय। इस कार्य को क्रियावित करने के उद्देश्य से उन्होंने श्री श्रीचन्द जी चोरड़िया के सहयोग से जैन बाममों के विभिन्न विषयों के पाठों का संकलन करना प्रारम्भ किया।
अस्तु प्रथम लेश्या विषय का संकलन कर लेश्या कोश नाम की पुस्तक का प्रकाशन किया गया जिसका देश व विदेश के विद्वानों द्वारा बहु सराहना की गई। कोश निर्माण एवं प्रकाशन कार्य को स्थायी रूप देने के उद्देश्य से जैन दर्शन समिति ( Jain Philosophical Society ) 1969 में स्थापना की गई। तब से यह संस्था स्व. मोहनलालजी बांठिया एवं श्री श्रीचन्दजी चोरडिया द्वारा निर्मित विषयों पर कोश प्रकाशन का कार्य कर रही है। इस प्रकार दसमलव प्रणाली के आधार पर करीब १००० विषयों पर आगम व प्राचीन भारतीय दर्शनों का तलस्पर्शी अध्ययन कर पांडुलिपियाँ तैयार की गई है। इस संस्था के द्वारा निम्नलिखित कोश प्रकाशित हुए है जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :
(१) लेश्या कोश-इस ग्रन्थ में छओं लेश्याओं का विस्तृत विवेचन है ।
लेश्याओं का आगम ग्रन्थों में अनेक जगह उल्लेख है इस ग्रन्थ में उसका संकलन किया गया है। जो शोध कार्य करने वाले विद्वानों के लिये बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है। यह पुस्तक अभी "आउट ऑफ प्रिन्ट" है ।
(२) क्रिया कोश - इस पुस्तक में आरंभिकी आदि २५ क्रियाओं का उल्लेख है। यह पुस्तक भी अभी “आउट ऑफ प्रिन्ट" है ।
(३) मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास- श्री श्रीचन्द चोरडिया के लगभग २०० ग्रन्थों के ग्रहन एवं गम्भीर अध्ययन का निचोड़ है। इस पुस्तक में शास्त्रों के आधार पर लेखक ने अपने विषय को प्रस्तुत किया है जिसको विद्वानों ने बहुत सहराया है।
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