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११ - कोई सयोगी जीव समान आयु वाले हैं और समान उत्पन्न होते हैं ।
२ - कई सयोगी जीव समान आयु वाले हैं किन्तु विषम ( भिन्न-भिन्न समय में ) उत्पन्न होते हैं ।
३ – कई सयोगी जीव विषम आयु वाले हैं और सब एक साथ उत्पन्न होते हैं और कितनेक सयोगी जीव विषम आयु वाले हैं और विषम उत्पन्न होते हैं ।
१ - जो समान आयु वाले और समान उत्पन्न होते हैं के पाप कर्म का भोग एक साथ प्रारम्भ करते हैं, और एक साथ समाप्त करते हैं ।
२ - जो समान आयु वाले और विषम उत्पन्न होते हैं वे पाप कर्म का योग एक साथ प्रारम्भ करते हैं और भिन्न समय में समाप्त करते हैं ।
३ -जो विषम आयु वाले और समान उत्पन्न होते हैं वे पाप कर्म का योग भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और एक साथ समाप्त करते हैं ।
४ - जो विषम आयु वाले और विषम उत्पन्न होते हैं वे पाप कार्य का योग भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और भिन्न समय में समाप्त करते हैं ।
• २० सयोगी नारकी और कर्म वेदन का प्रारम्भ और समाप्ति रइया नं भंते ? पावं कम्म कि समायं पट्ठविसु समायं निट्ठविसु
पुच्छा।
गोमा ! अत्थेगइया समायं पट्टवसु एवं जहेव जीवाणं तहेव भाणियवं नाव अणागारोवउत्ता । एवं जाव बेमाणियाणं जस्स जं अस्थि तं एएणं चेव कमेण भाणियब्बं ।
- भग० श २९ । उ १ सू ४
सयोगी-मनो योगी क यावत् वैमानिक तक
जिस प्रकार औधिक जीवों की वक्तव्यत्ता कहीं उसी प्रकार वचन योगी व काय योगी नारकी की वक्तव्यत्ता कहनी चाहिए।
जानना ।
जिसके जो जो योग हो वह वह योग कहना |
नोट -- पाप कर्म को भोगने का प्रारम्भ और समाप्ति के लिए सम काल और विषम काल की अपेक्षा चौभंगी कहीं है । वह चौभंगी सम आयु और विषम आयु और सम उत्पत्ति और विषम उत्पत्ति वाले जीवों की अपेक्षा घटित होती है ।
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