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•२ सयोगीनारको तथा अध्यवसाय-योग-करण से आयुष्य बंध
(पेरइया) अज्झवसाण जोगणिन्वत्तिएणं करणोवाएणं एवं खलु ते जीवा परभवियाउयं पकरेंति ।
-भग० श २५ । उ८ । सू ३
नारकी जीन अपने अध्यवसाय रूप और जोग आदि के व्यापार से करणोपाय ( कर्म बंध के हेतु ) द्वारा परयव भी आयुष्य बांधते हैं।
सयोगी असुर कुमार यावत् वैमानिक देव के दंडक तथा अध्यवआय-योग करण के आयुष्यबंध ।
( असुरकुमारा। ) जहाणेरइया तहेव णिरवसेसं जाव णो परप्पओगेण उववज्जति । एवं x x x जाव बेभाणिया
भग. श २५ । उ ८ सू ८
असुर कुमार से वैमानिक देव तक अपने अध्यवसाय और जोग आदि के व्यापार से करणोपाय से परभवका आयुष्य बांधते हैं ।
'३ अबन्धोऽयोगी
-जैनसिदी. प्र८ । सू२४
अयोगी के कयंबंध नहीं होता है। •१९ सयोगी जीव और कर्म का प्रारम्भ और अंत
"१ सलेस्सा णं भंते ! जीवा पावं कम्म० ?
एवं चेव, एवं सम्वट्ठाणेसु वि जाव अणागारोवउत्ता। एए सम्वे वि पया एयाए वत्तव्वयाए भाणियन्वा ।
-भग. श २९ । उ १। सू ३ सयोगी जीव मन योगी-वचन योगी-काय योगी जीवों में १-कितने ही सयोगी जीव एक साथ प्रारम्भ करते हैं और एक साथ समाप्त करते हैं।
२-या एक साथ साथ प्रारम्भ करते हैं और भिन्न समय में समाप्त करते हैं । यो ३-भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और एक साथ समाप्त करते हैं ४ या भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और भिन्न समय में समाप्त करते हैं। क्योंकि सयोगी जीव चार प्रकार के कहे हैं, यथा
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