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मध्यम अर्थात् असत्य और उभय मनोयोग और वचन योग तथा सत्य और अनुभय मनोयोग और सत्य वचन योग के जीव समास एक संज्ञी पर्याप्त ही ( जीव का एक भेद चौदहवां ) होता है।
अनुभय वचन योग में विकलत्रय जीव समास से दो-इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय संजीअसंज्ञो पंचेन्द्रिय पर्याप्त रूप पाँच होते हैं ( जीव के भेद छट्ठा, आंठवाँ, दसवाँ, बारहवाँ चौदहवाँ होता है।) •४ कार्मण काययोग और जीव समास कामणकाययोगःxx x जीव समासश्चxx x अष्टौ भवति ।
–गोजी• गा ६८४ । टीका कार्मणकाय योग में जीव समास आठ होते हैं। सात भेद अपर्याप्त के व एक चौदहवां भेद एवं आठ जीव के भेद होते हैं । .५ वैक्रिय काय योग और जीव समास '६ वैक्रियमिश्र काय योग और जोव समास
वैक्रियिककाययोगxxx मिश्रकाययोग x x x जीवसमासः तयोः क्रमेण संज्ञियाप्तः तन्निनिर्वृत्त्यपर्याप्तः एकैकः ।
जीव समास-उनमें से-बैक्रियिक काययोग में संज्ञी पर्याप्त और वैक्रियमिश्र काय योग में संज्ञी अपर्याप्त होता है। •७ योग और जीव भेद काययोग और जीव भेद
जीवसमासाः औदारिकयोगे पर्याप्ताः सप्त। तेन मिश्रयोगे अपर्याप्ताः सप्त । सयोगस्य चैकः एवमष्टौ।
–गोजी० गा६८१। टीका ___ औदारिक काय योग में सात पर्याप्त जीव समास ( जीव के भेद ) होते हैं। अतः औदारिक मिश्र काय योग में सात अपर्याप्त जीव समास होते हैं और सयोग केवली में एक जीव समास ( चौदहवां भेद ) होता है। इस तरह माठ जीव समास होते हैं। .१२ सयोगी और पर्याप्त-अपर्याप्त अवस्था .१ योग और पर्याप्त-अपर्याप्त अवस्था
गुणजीवा पज्जत्ती पाणा सण्णा गई दिया काया। जोगा वेदकसाया णाणजमा सणा लेस्सा ॥
-गोजी• गा ७२५
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