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निर्वृत्त्यपर्याप्त जीवसमासों के उपपादयोगस्थान और एकान्तानुवृद्धियोगस्थान होते हैं। सात निर्वृत्तिपर्याप्त जीवसमासों के परिणामयोगस्थान ही होते हैं ।
.८२ योग स्थान का प्रमाण
टोका-संपहि पमाणं वुच्चदे। तं जहा—एदेसि वृत्तसव्वजीवसमासाणं उपवादजोगट्ठाणाणं एयंताणुवड्डिजोगट्टाणाणं परिणामजोगट्ठाणाणं च पमाणं सेडीए असंखेज्जदिभागो। पमाणपरूवणा गदा।
-षट्० खण्ड ४ । २ । ४ सू १७३ । पु० १० । पृष्ठ ४०४
योगस्थान का प्रमाण-ये जो जीवसमासों के उपपाद योगस्थान, एकान्तानुवृद्धियोगस्थान तथा परिणामयोग स्थान कहे गये हैं उनका प्रमाण जगश्रेणी के असंख्यातवें भाग रूप है।
८.३ योग के अल्पबहुत्व के भेद _____टोका- अप्पाबहुगं ( दुविहं ) जोगट्ठाणप्पाबहुगं जोगविभागपरिच्छेदप्पाबहुगं चेदि। योग स्थानों का अल्पबहुत्व ____टीका-तत्थ जोगट्ठाणप्पाबहुगं वत्तइस्सामो। तं जहा-सव्वत्थोवाणिसत्तणं लद्धिअपज्जताणमुववादजोगट्ठाणाणि। तेसिमेगंताणुवड्डिजोगट्टाणाणि असंखेज्जगुणाणि। परिणामजोगट्टाणाणि असंखेज्जगुणाणि। सत्तण्णंणिव्वत्तिअपज्जत्तजीवसमासाणं सव्वत्थोवाणि उववादजोगट्ठाणाणि। एगंताणुवड्डिजोगट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । सत्तण्णंणिव्वत्तिपज्जत्ताणं णत्थि अप्पाबहुगं, परिणामजोगट्ठाणाणि मोत्तूण तत्थ अण्णेसि जोगट्ठाणाणमभावादो। सव्वत्थ गुणगारोपलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो। एवं जोगट्ठाणप्पाबहुगं समत्तं ।
___-षट् खं ४ । २ । ४ सू १७३ । पु १० । पृष्ठ ४०४ योग का अल्पबहुत्व दो प्रकार का है- योगस्थान अल्पबहुत्व और योगविभागप्रतिच्छेद-अल्पबहुत्व।
योगस्थान का अल्पबहुत्व-सात लब्ध्यपर्याप्तों के उपपादयोगस्थान सबसे स्तोक हैं। उनसे उनके एकान्तानुवृद्धिः योगस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे परिणामयोगस्थान असंख्यात गुणे हैं। सात निवृत्त्यपर्याप्त जीवसमासों के उपपादयोगस्थान सबसे स्तोक हैं । उनसे एकान्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणे हैं। सात निर्वृत्तिपर्याप्तों के अल्पबहुत्व नहीं होता है, क्योंकि इनमें परिणाम योगस्थान को छोड़कर अन्य योगस्थान नहीं होता है।
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