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( २ )
- १.५ अयोगी और ज्ञान
सजोगी णं भंते! जीवा किं नाणी ? अण्णाणी ? जहा सकाइया, एवं मण जोगी, वइजोगी, कायजोगी वि । अजोगी जहा सिद्धा ।
भग० श८ । उ२ । सू १७६
अयोगी जीव में नियम से एक केवल ज्ञान होता है । सिद्ध की तरह । नोट - पृथ्वीकायिक से वनस्पतिकायिक जीवों में केवल काय योग होता है । उनमें नियमतः मति अज्ञान और श्रुत अज्ञान होता हैं ।
- १.५ योग और उपयोग
योगे अयोगे सिद्धय केवलज्ञानदर्शनाख्यो द्वौ ।
सयोगी अयोगी और सिद्धों में केवल ज्ञान और केवल दर्शन दो उपयोग होते हैं । • १.६ योग और केवल ज्ञान
- गोजी० । गा ७०५ । टीका
केवल ज्ञान सयोगी में भी होता है, अयोगी में भी होता है । केवलज्ञानं सयोगायोगयोः सिद्ध े च ।
केवल ज्ञान सयोगी-अयोगी गुणस्थान में व सिद्धों में होता है । . २ सयोगायोगयोदेकं केवलज्ञानमेव
- गोजी ० गा ६८८ । टीका
सयोगी - अयोगी गुणस्थान में एक केवल ज्ञान होता हैं । • १.७ योग और दर्शन
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- गोजी० गा ७०३ । टीका
सयोगायोगयोः सिद्ध चैकं केवलदर्शनम् ।
योगी - अयोगी और सिद्धों में एक केवल दर्शन होता है ।
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- गोजी० गा ७०३ । टीका
• १.८ योग और जीव समास
केवलदर्शनं सयोगायोग गुणस्थानयोः तत्र जीवसमासौ केवलज्ञानोक्तौ द्वौ ।
— गोजी० मा ६९१ । टीका
केवल दर्शन सयोगी - अयोगी गुणस्थानों में होता है । उसमें दो जीवसमास होते हैं जो केवल ज्ञान में होते हैं ।
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