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०४:०५ योग-कोश
.१ से ४ सयोगी जीव १ सयोगी जीव और ज्ञान
१.१ सजोगी णं भंते! जीवा कि णाणी अण्णाणी? जहा सकाइया। ( सकायिक पाठ-सकाइया णं भंते ! जीवा कि णाणी अण्णाणी? गोयमा ! पंच णाणाणि तिणि अण्णाणाइ भयणाए। प्र३८ ) एवं मणजोगी, वइजोगी कायजोगी वि।
- भग० श ८ । उ २ । प्र ९४ सयोगी जीव में पांच ज्ञान तथा तीन अज्ञान की भजना होती है। .१.२ मनोयोगी और ज्ञान .१.३ वचन योगी और ज्ञान .१४ काय योगो और ज्ञान १४ अयोगी और ज्ञान
इसी प्रकार मनोयोगी जीव में पाँच ज्ञान तथा तीन अज्ञान की भजना है। इसी प्रकार वचन योगी जीव में पांच ज्ञान तथा तीन अज्ञान की भजना है । इसी प्रकार काय योगी जीव में पांच ज्ञान तथा तीन अज्ञान की भजना है।
जिस सयोगी जीव के भव की अपेक्षा केवल काय योग होता है उसके मति-श्रुत अज्ञान होता है लेकिन ज्ञान नहीं होता है। जिस सयोगी जीव के भव की अपेक्षा काय योग व वचन योग होता है उसके भी मति श्रुत ज्ञान तथा मति-श्रुत अज्ञान की भजना है।
जिस सयोगी जीव के तीनों योग होते हैं उन सयोगी जीव के पांच ज्ञान-तीन अज्ञान की भजना होती है।
सयोगी मिथ्या दृष्टि तथा सम्यग-मिथ्या दृष्टि में मति अज्ञान-श्रुत अज्ञान की नियमा है तथा विभंग अज्ञान की भजना है। सयोगी सास्वादान सम्यग् दृष्टि, अव्रत सम्यग् दृष्टि तथा संयतासंयत में मति ज्ञान-श्रुत ज्ञान की नियमा है तथा अवधि ज्ञान की भजना है। सयोगी प्रमत्त संयत से अक्षीण मोहतक मति ज्ञान-श्रुत-ज्ञान की नियमा है तथा अवधि ज्ञान-मनः पर्यव ज्ञान की भजना है। सयोगी केवली व अयोगी केवली में केवल ज्ञान की नियमा है। सिद्ध अयोगी होते हैं - केवल ज्ञान की नियमा है।
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