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३-जिन पुद्गल समूह की सहायता से आत्मा हलन-चलन की क्रिया करती है उसको काय वर्गणा कहते है तथा इसकी सहायता से हलन-चलन की क्रिया होती है। योग और आत्मा
कहिविहा णं भंते ! आया पण्णत्ता, गोयमा । अहविहा आया पण्णत्ता, तंजहा दवियाया, कसायाया, जोगाया x xx।
-भग• श १२ । उ १० आत्मा के आठ भेद है-योग आत्मा का तीसरा भेद है। जीव की मन, वचन और काय की योगमय परिणति । आत्मा जीव का पर्यायवाची शब्द है अतः योग जीव की प्रवृत्ति है। द्रव्य आत्मा व जीव का एक ही अर्थ है। जीव परिणामी नित्य है। उसकी अवस्थाएँ बदलती रहती है और वे अनंत है। आत्मा उन-उन शब्दों का बोधक है। सयोगी और गुणस्थान
___कम्मविसोहि मग्गणं पडुच्च चउद्दस जीवहाणा पण्णत्ता, तंजहा x x x सयोगी केवली, अजोगी केवली।
-समवाओ १४५ कर्म की विशुद्धिर्मार्गणा की दृष्टि से चौदह गुणस्थान है। उसमें तेरहवाँ सयोगी केवली गुणस्थान है तथा चौदहवाँ अयोगी केवली गुणस्थान है। करण और योग
पच्चीस बोल का चौबीसवाँ बोल करण और योग के प्रत्याख्यान रूप ४६ भाँगे का है। इसमें एक कोटि से नौ कोटि का प्रत्याख्यान किया जाता है ।
अंक ११-एककोटि का त्याग। पहले १ का अर्थकरण व दूसरे १ का अर्थयोग है:-इसके नौ भंग बनते है।
१-करूँ नहीं, मन से २-करूँ नहीं, वचन से ३-कलं नहीं, काय से ४-कराऊँ नहीं, मन से ५-कराऊँ नहीं, वचन से ६-कराऊँ नहीं, काय से ७-अनुमोदू नहीं, मन से ८-अनुमोदूं नहीं, वचन से ६-अनुमोदूँ नहीं, काय से इसी प्रकार अन्य भंग के विषय में जान लेना चाहिए।
चौदहवाँ गुणस्थान केवल पारिणामिक भाववाला होता है। वह अयोग संवर चार भाव वाला नहीं होता।
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