SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २२६ ) सजोगी जहा पुलाए। एवं जाव सुहुमसंपरायसंजए। अहक्खाए जहा लिणाए। -भग० श २५ । उ७पु ४४ सामायिक संयत सयोगी होते हैं, अयोगी नहीं होते हैं । पुलाक की तरह सामायिक संयत मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी होते हैं । इसी प्रकार छेदोपस्थानीय, परिहार विशुद्धि तथा सूक्ष्म संपराय संयत मनोयोगी, वचन योगी और काययोगी होते हैं। __ यथा ख्यात संयत स्नातक की तरह सयोगी भी होते हैं अयोगी भी होते हैं। यदि सयोगी होते हैं तो शैलेशी अवस्था में पहले तक के सयोगी होते हैं और शैलेशी अवस्था में अयोगी बन जाते हैं। ९२.१ सामायिक शुद्धिसंयत में सामाइयसुद्धिसंजदाणं भण्णमाणे xxx एगारह जोग xxx। पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अणियहि त्ति ताव मूलोघ-भंगो। -षट् खं० १, १ । पु २ । पृ० ७३३ सामायिकशुद्धि संयत में ग्यारह योग होते हैं। प्रमत्त संयत में ग्यारह योग होते है । अप्रमत्त संयत, अपूर्व करण, अनिवृत्ति बादर गुण स्थान में नौ योग होते हैं। .९२२ छेदोपस्थानीय संयत में एवं (जहा समाइयसुद्धिसंजदाणं) छेदोवठ्ठाषणसंजमस्स वि वत्तन्वं । -षट • खं १, १ । पु २ । पृ० ७३३ जैसा सामायिक शुद्धि संयत में योग के विषय में कहाँ-वैसा ही छेदोपस्थापनीय संयत के विषय में जानना चाहिए । अप्रमत्त संयत छेदोपस्थापनीय यावत् अनिवृत्ति बादर गुण स्थान में नौ योग होते हैं। प्रमत्त संयत छेदोपस्थायनीय में औधिक छेदोपस्थापनीय संयत में ग्यारह योग होते हैं । ९२.३ परिहारविशुद्धि संयत में परिहारसुद्धिसंजदाणं भण्णमाणे XXX णव जोग आहाराहारमिस्सा णस्थि xxx। पमत्त-अप्पमत्त-परिहारसुद्धिसंजदाणं. पुधपुध भण्णमाणे ओघ-भंगो। -षट् खं १ । १ । पु २ । पृ० ७३३-३४ परिहार विशुद्धि संयत में नौ योग होते हैं । इस संयत में आहारक तथा आहारकमि काय योग नहीं होता है। प्रमत्त संयत तथा अप्रमत्त संयत परिहार विशुद्धि संयत में पृथक्पृथक औधिक भंग की तरह नौ योग होते हैं । ९२.४ सूक्ष्मसापरायिक शुद्धि संयत में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy