________________
( २२८
)
पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में दो योग होते हैं। उपशम सम्यग्दृष्टि संययासंयत में नौ योग होते हैं । उपसम सम्यग्दृष्टि प्रमत्त संयत में नौ योग, अप्रमत्त संयत में नौ योग होते हैं । उपशम सम्यगढष्टि अपूर्वकरण यावद उपशांत कषाय गुण स्थान में औधिक भंग की तरह नौ योग होते हैं।
९१ असंयत में
असंजदाणं भण्णमाणे xxx तेरह जोग xxx। तेसिं चेव पजताणं xxx दस जोग xxx। तेसिं चेष अपजत्ताणं x x x तिण्णिजोग xxx। मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइहि त्ति मूलोघ-भंगो।
-षट्० खं १ । १ । पु २ । पृ० ७३६-३८
असंयत में तेरह योग होते हैं। इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में तीन योग होते हैं --असंयत मिथ्यादृष्टि यावत् असंयत सम्यग्दृष्टि में मूल औधिक की तरह योग के विषय में जानना चाहिए। असंयत सम्मामिथ्याष्टि में दस योग होते हैं। इनमें अपर्याप्त अवस्था नहीं होती है ।
९२ संयत में
संजमाणुवादेण संजदाणे भण्णमाणे xxx तेरह जोग अजोगो पि अस्थि xxx | पमत्तसंजदाणंxxx एगारह जोग XXX| अप्पमत्तसंजदाणं xxx णव जोग । अपुब्धयरणप्पष्टुडि जाप अजोगिकेवलि ति ताप मूलोघ-भंगो।
-षट • खं १।१।पु २ | पृ. ७३०-३२ संयत में तेरह योग होते हैं, अयोगी भी होते है संयत-प्रमत्त संयत में ग्यारह योग, अप्रमत्त संयत में नौ योग होते हैं। अपूर्वकरण गुण स्थान यावत अयोगी केवली गुण स्थान में योग के विषय में मूल औधिक की तरह जानना चाहिए । संयत अपूर्वकरण से क्षीण मोह गुण स्थान तक नौ योग होते हैं। संयत सयोगी केवली में सात योग तथा अयोगी केवली गुणस्थान में योग नहीं होता है । ९२.१ सामायिक संयत में ९२.२ छेदोपस्थापनीय संयत में ९२.३ परिहारविशुद्धि संयत में '९२४ सूक्ष्मसंपराय संयत में ९२५ यथाख्यात संयत में .९२१ सामाइयसंजए णं भंते ! कि सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा १ गोयमा!
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org