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________________ ( 27 ) सव्वे सुद्धा हु सुद्धणया-द्रव्यसंग्रह-अर्थात् एक तत्व में दो परस्पर विरोधी रूप नहीं हो सकते। यदि है तो उनमें कोई एक ही रूप मौलिक एवं वास्तविक हो सकता है। शान, दर्शन व उपयोग आदि में जीव जो परिणमन करता है उससे उसके आत्म प्रदेशों का परिस्पंदन नहीं होता है। योग और क्रिया परिस्पंदनात्मक है। परिणाम और क्रिया दोनों जीव के भाव है। जब कोई जीव क्रिया करता है तब उसके आत्म प्रदेशों का परिस्पंदन होता है। परिस्पंदनात्मक भाव में एजनादि क्रिया तथा देशान्तर प्राष्टि रूप क्रिया करता है। चतुर्दशगुणस्थानवी जीव के सम्पूर्ण योग निरोध हो जाते है। जो जीव अयोगी होता है वह क्रियारहित होता है, अयोगी जीव अलेशी होते है। जहाँ योग है वहाँ क्रिया अवश्य है। मन-वचन-काययोगी की क्रियाओं से कर्मबंधन होता है। योग के साथ कषाय होती है तो सांपरायिकी क्रिया होती है, योग के साथ कषाय नहीं होती है तो ऐयोपथिकी क्रिया होती है। कहा है सूक्ष्मवादर-काय-वाङ्-मनोयोगनिरोधादक्रियाxxx सयोगित्वात सक्रिया। -पण्ण• प २२ । सू १५७३ । टीका अर्थात सूक्ष्म-बादर कायवाङ्-मनोयोग का निरोध होने से जीव अक्रिय हो जाता है। सयोगी जीव योग के कारण सक्रिय होता है। उपयोग जीव का मौलिक गुण है। यह गुण सयोगी व अयोगी जीव में होता है। अयोगी सर्वज्ञ का केवल ज्ञानोपयोग तथा केवल दर्शनोपयोग सर्वथा अपरिस्पंदनात्मक अकरण वीर्यवाला अर्थात सब प्रकार की क्रिया से रहित होता है । __ मति-भत-अवधि-मनःपर्यव वाले जीव सयोगी होते है, अयोगी नहीं होते हैं । केवलशानी जीव सयोगी भी होते है, अयोगी भी। वचनयोग-भाषा रूप है । द्रव्ययोग रूपी है, अचित्त है व अजीव है । यद्यपि भाषा जीवों के होती है, अजीवों के नहीं होती। बोलने के पूर्व, बोलने के पश्चात् भाषा नहीं कहलाती है। परन्तु बोलने के समय भाषा कहलाती है। बोलने से पूर्व तथा पश्चात भाषा का भेदन नहीं होता है। बोलने की भाषा का भेवन होता है। अस्तु भाषा जीव के द्वारा बोली जाती है और वह जीव के बंध और मोक्ष का कारण होती है। सयोगी जीव वर्तमानकाल में किसी न किसी कर्म को बांधता है लेकिन सलेशी शुक्ललेशी जीवों में ऐसा भी जीव होता है वह वर्तमान में किसी भी प्रकार का कर्म बंधन नहीं करता है। भग• श २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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