________________
( १७६ )
औदारिक, औदारिकमिम और कार्मणकाय - ग्यारह योग । संयतासंयत तिर्यंचों में चार मन के, चार वचन के और औदारिक काय --- नौ योग होते हैं ।
औधिक तिर्यंचों में मन, वचन और काय - तीनों ही योग होते हैं ।
.०१०.१ अपर्याप्त तियंचों में
सिं (तिरिक्खाणं ) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x बे जोग xxx । तेसिं ( तिरिक्ख-मिच्छाइट्ठीणं) वेब अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि × × × वे जोग x x x | तेसिं ( तिरिक्ख- सासणसम्माइट्ठीणं ) चेव भण्णमाणे अस्थि x x x वे जोग x x x । तेसि ( तिरिषख - असंजदसम्माइट्ठीणं ) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x वे जोग xxx । ० खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ४७३-८०
- षट् ०
अपर्याप्त तिर्यंचों में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय - दो योग होते हैं । गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि अपर्याप्त तिर्यंचों में उपर्युक्त दो योग । सासादन सम्यग्दृष्टि अपयप्ति तिर्यंचों में उपर्युक्त दो योग । सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान अपर्याप्त जीव में नहीं होता है | असंयत सम्यग्दृष्टि अपर्याप्त तिर्यचों में उपयुक्त दो योग ।
• १०.०२ पर्याप्त तिर्य खो में
सिं (तिरिक्खाणं ) चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x णव जोग xxx । तेसिं ( तिरिक्ख-मिच्छाइट्ठीणं ) चेव पजताणं भण्णमाणे अस्थि x x x व जोग x x x | तेसिं ( तिरिक्ख- सासणसम्माइट्ठीणं ) चेव पजात्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x णव जोग x x x । तेसि ( तिरिक्ख - असंजदसम्माइट्ठीणं ) चेच पज्जत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x णव जोग x x x |
- षट् ० ० १, १ । टीका । पृ २ | पृ० ४७२-८०
पर्याप्त औधिक तिर्यों में चार मन के, चार वचन के, और औदारिककाय - नौ योग होते हैं । गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि पर्याप्त तिर्यचों में उपर्युक्त नौ योग । सासादन सम्यग्दृष्टि पर्याप्त तिर्यंचों में उपर्युक्त नौ योग । असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त तिर्यंचों मैं उपर्युक्त नौ योग होते हैं । इनसे आगे के सभी गुणस्थान पर्याप्त में ही होते हैं, अतः सभ्यग् मिथ्यादृष्टि और संयतासंयत गुणस्थान में उपर्युक्त नौ योग होते हैं ।
.०११ औधिक एकेन्द्रियों में
(क) सामण्णे दियाणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणद्वाणं x x x तिण्णि जोग x x x | - षट् ० ० खं० १, १ । टीका । पु२ | पृ० ५६६ (ख) तिविहे जोगे पन्नत्ते, तंजहा- मणजोगे वतिजोगे कायजोगे, एवं णेरतिताणं विगलिंदियवजाणं x x x |
- ठाण● स्था ३ | उ १ । सू १३ । पृ० ५४१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org