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________________ ( १७७ ) मिभ और कामणकाय- ग्यारह योग होते हैं । गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि षष्ठम पृथ्वी के नारकियों में उपयुक्त ग्यारह योग होते हैं । सासादन सम्यग्दृष्टि षष्ठम पृथ्वी के नारकियों में चार मन के, चार वचन के और वैक्रियकाय-नौ योग। सम्यग्मिथ्यादृष्टि षष्ठम पृथ्वीके नारकियों में उपर्युक्त नौ योग । असंयत सम्यग्दृष्टि षष्ठम पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त नौ योग होते हैं। षष्ठम पृथ्वी के नारकियों में मन, वचन और काय-तीन योग होते हैं। षष्ठम पृथ्वी के नारकियों में चार मन के. चार वचन के वैक्रियशरीर, वैक्रियमिश्रशरीर और कार्मणशरीर काय-ग्यारह प्रकृष्ट योग या प्रयोग होते हैं । •०८०१ षष्ठम पृथ्वी के अपर्याप्त नारिकयों में देखो पाठ द्वितीय पृथ्वी के अपर्याप्त नारकी ०४.०१ । षष्ठम पृथ्वी के अपर्याप्त नारकियों में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान होता है तथा वै क्रियमिश्र और कामणकाय-दो योग होते हैं। गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि षष्ठम पृथ्वी के अपर्याप्त नारकियों में उपर्युक्त दो योग होते हैं । .०८.०२ षष्ठम पृथ्वी के पर्याप्त नारकियों में देखो पाठ द्वितीय पृथ्वी के पर्याप्त नारकी ०४.०२ । षष्ठम पृथ्वी के पर्याप्त नारकियोंमें आदि के चार गुणस्थान होते हैं तथा चार मन के, चार वचन के और वैक्रियकाय - नौ योग होते हैं। गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि षष्ठम पृथ्वीके पर्याप्त नारकियों में उपर्युक्त नौ योग । सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि षष्ठम पृथ्वी के पर्याप्त नारकी ही होते हैं और इनमें उपर्यक्त नौ योग होते है। ०९ सप्तम पृथ्वी के औधिक नारकियों में देखो पाठ द्वितीय पृथ्वी के औधिक नारकी '०४। सप्तम पृथ्वी के औधिक नारकियों में चार मन के, चार वचन के, वैक्रिय, वैक्रियमिभ और कार्मणकाय-ग्यारह योग होते हैं। गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि सप्तम पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त ग्यारह योग होते हैं। सासादन सम्यग्दृष्टि सप्तम पृथ्वी के नारकियों में चार मन के, चार वचन के और वैक्रियकाय-नौ योग। सम्यग्मिथ्यादृष्टि सप्तम पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त नौ योग। असंयतसम्यग्दृष्टि सप्तम पृथ्वी की नारकियों में उपर्युक्त नौ योग होते हैं। सप्तम पृथ्वी के नारकियों में मन, वचत और काय-तीन योग होते हैं। सप्तम पृथ्वी के नारकियों में चार मन के, चार वचन के, वैक्रियशरीर, वैक्रियमिश्रशरीर और कार्मणशरीर काय-ग्यारह प्रकृष्ट योग या प्रयोग होते हैं। Jain Education Intentional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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