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________________ ( १६० ) जणवय सम्मय ठवणा, णामे रूवे पडुच्चसच्चे य । ववहार भाव जोगे, दसमे ओधम्मसच्चे य॥ -टाण० स्था.१०। सू८६ दस प्रकार के सत्य में एक योग सत्य भी है। .०२८ योग और परम पुण्य का उपार्जन कषायेन्द्रिययोगानां निग्रहेनियमादिभिः । सहानपूजनैश्चाहंद्गुरु भक्त यादिसेवनैः ॥ २५॥ शुभभावनया ध्यानाध्ययनादिसुकर्मभिः । धर्मोपदेशनैः पुण्यं लभ्यते परमं बुधैः ॥ २६ ॥ -वीरवर्धच० अघि १७ कषाय, इन्द्रिय और मनोयोगादि के निग्रह से, नियमादि के धारण करने से, उत्तम दान देने से, पूजन करने से अहं भक्ति, गुरुभक्ति आदि करने से x x x पंडितजन परम पुण्य को प्राप्त करते हैं। .०२९ प्रदेशबंध और योगस्थान xxx पदेसबंधादो जोगठाणाणि सेडिए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि जहण्णहाणादो अवहिदपक्खेवेण सेडीए असंखेज्जदिभाग पडिभागिएण विसेसाहियाणि जा (व) उक्कसजोगहाणेत्ति दुगुण दुगुणहाणिअद्धाणेहि सहियाणि सिद्धाणि हवंति। कुदो १ जोगेणविणा पदेसबंधाणुषवत्तीदो। अथवा अणुभागबंधादो पदेसबंधो तकारणजोग द्वाणणि च सिद्धाणि हवं ति । कुदो ? पदेसेहि विणाअणुभागाणुववत्तीदो xxx | -षट् • खं १।६ । ७ । सू ४३ । टीका । पु ६ । पृ २०१ प्रदेश बंध से योगस्थान सिद्ध होते हैं। वे योगस्थान जगश्रेणी के असंख्यातवे भागमात्र हैं, और जघन्य योगस्थान से लेकर जगश्रेणी के असंख्यातवें भाग-प्रतिभाग रूप अवस्थित प्रक्षेप के द्वारा विशेष अधिक होते हुए उत्कृष्ट योगस्थान तक दुगुने-दुगुने गुणहानि आभास से सहित सिद्ध होते हैं, क्योंकि योग के बिना प्रदेश बंध नहीं हो सकता है। अथवा अनुभागबंध से प्रदेशबंध और कारणभूत योगस्थान सिद्ध होते है, क्योंकि प्रदेशों के बिना अनुभागबंध नहीं हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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