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भावणं दुहिं आगम-णोआगमभावद्वाणभेदेण । तत्थ आगम-भावद्वाणं णाम द्वाणपाहुडजाणओ उबजुत्तो । णो आगमभावट्ठाणमोदइयादिभेदेण पंचI विहं । एत्थ ओदश्यभावट्ठाणेण अहियारो, अघादिकम्माणमुदएण तप्पा ओग्गेग जोगुप्पत्तदो । जोगो खओवसमिओ त्ति के वि भांति । तं कथं घडदे ! वीरियंत राइयक्खओवसमेण कत्थ वि जोगस्स वड्ढिमुवलक्खिय खओवसमियत्तादुप्पायादो घडदे |
जोगस्स ट्ठाणं जोगट्ठाणं, जोगट्ठाणस्स परूवणदा जोग ठाणपरूवणदा, तीए जोगट्ठाणपरूवणदाए दस अणिओगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति 1 किमत्थमेत्थ जोगट्ठाणपरूषणा कीरदे ? पुव्विलम्मि अप्पाबहुगमि सव्वजीवसमासाणं जहण्णुक्कस्सजोगट्ठाणाणं थोवबहुत्तं खेच जाणाविदं । केत्तिएहि अविभागपडिच्छेदेहि फहहि वग्गणाहिचा जहण्णुकस्सजोगट्ठाणाणि होति त्तिण वृत्तं । जोगट्ठाणाणं छच्चेच अंतराणि अप्पाबहुगम्मि परुविदाणि । तदो तेसिमण्णत्थ निरंतरं वड्ढी होदि ति णव्वदे । साच चड्ढी सम्वत्थ किमवदा किमणवट्ठिदा किंवा बड्ढीए पमाणमिदि पदं पि तत्थ ण परुविदं । तदो एदेसिं अपरूविदअस्थाणं परूवणट्ठ जोगट्ठाणपरूवणा कीरदे ।
-- षट्० खं ४, २, ४ । सू १७५ । टीका । १० । पृ० ४३४-३६
योगस्थान नाम, स्थापना, द्रव्य ओर भाव के भेद से चार प्रकार का है। इनमें नाम और स्थापना सुगम हैं, अतः इनका अर्थ नहीं कहा गया है । द्रव्यस्थान दो प्रकार का है - आगमद्रव्यस्थान और नोआगम द्रव्यस्थान । स्थानप्राभृत के जानकार उपयोग रहित जीव को आगम द्रव्यस्थान कहते हैं । नोआगम द्रव्यस्थान ज्ञायक शरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्त के भेद से तीन प्रकार का है। उनमें ज्ञायकशरीर और भावी स्थान सुगम हैं । तद्व्यतिरिक्त द्रव्यस्थान तीन प्रकार का है - सचित्त, अचित और मिश्र नोआगम द्रव्यस्थान | सचित्त नोआगम द्रव्यस्थान दो प्रकार का है - बाह्य और आभ्यन्तर । बाह्य द्रव्यस्थान दो प्रकार का है - ध्रुव और अध्रुव । ध्रुव बाह्य सचित्त नोआगम द्रव्यस्थान सिद्धों के अवगाहनास्थान को कहते हैं, क्योंकि वृद्धि और हानि का अभाव रहने के कारण उनकी अवगाहना स्थिर रहती है । अव सचित्त स्थान संसारी जीवों की अवगाहना को कहते हैं, क्योंकि उनमें वृद्धि और हानि पाई जाती है । आभ्यन्तर सचित्तस्थान दो प्रकार का है - संकोच - विकोचात्मक और तद्विहीन । संकोचविकोचात्मक आभ्यन्तर सचित्तस्थान योगयुक्त सभी जीवों के जीवद्रव्य को कहते हैं । तद्विहीन आभ्यन्तर सचित्तस्थान केवलज्ञान और केवलदर्शन के धारक तथा मोक्ष और स्थितिबन्ध से अपरिणत सिद्धों और अयोगिकेवलियों के जीवद्रव्य को कहते हैं । यहाँ पर जीवद्रव्य जीवद्रव्य का अभिन्न स्थान होने का कारण यह है। कि स्व से भिन्न द्रव्यों के अन्य द्रव्यस्थान का हेतु न होने से अपने त्रिकोटि ( उत्पाद, व्यय और ध्रोव्य ) स्वरूप परिणाम के कथंचित् भेदाभेद रूप से सब द्रव्यों का अवस्थान पाया जाता है। /
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