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( १२६ ) देश उत्तर गुण जोग आतमां, श्रावक नी सुविसेखोजी ॥ १३ ॥ सर्व उत्तर गुण देश उत्तर गुण, जोग आतमां किण न्यायोजी। शुभ जोगां सुं कम कटै छै, तिणनें निर्जरा कही जिनरायोजी ।। १४ ।।
-झीणीचर्चा दाल E .०२८ योग आत्मा और निर्जरा
तिण निर्जरा रा बारै भेद कह्या छै, सूत्र उवाई मांयोजी। प्रथम भेद अणलण जिन भाख्यो, चउत्थ भक्त तिण मांयोजी ॥ १५ ॥ काल उणोदरी उत्तराध्ययने, अध्ययन तीसमां मांडोजी। पुरमट्ठपोरलियादिक तांमें, निपुण विचारै न्यायोजी ॥ १६ ॥ रस परित्याग निर्जरा, मांही, आंविल नबी आयोजी। कर्मकाटणरी एसहुकरणी, जोग आतमां सुखदायो जी ॥ १७ ॥
-झीणीचर्चा दाल .०२९ योग आत्मा और कर्म
करमारी करता छै केती, दर्शण जोग कषायोजी। यां तीनां सं कर्म बंधै छ, अवरां सं नहीं बंधायोजी ॥१८॥ पुन्य री कर्ता कवण आत्मा, जोग आत्मा शुभ ताह्यो जी। पाप री करता कवण आत्मा, दर्शण जोग कषायो जी ॥ १९ ॥
-झीणीचर्चा ढालह
.०३० योग और प्रमाद आनव
मन वचन काया रा व्यापार स्यूँ जी, तीजो आनष जुदो जणाय । जोग आस्रव छै पांचमोजी, प्रमाद तीजो ताहि ॥ २९ ।। असंख्याता जीवरा प्रदेसमें जी, क्षण उछाहपणो अधिकाय । तेदीसे तीनूं जोगास्यूं जुदो जी, प्रमाद आस्रष ताय ॥ ३०॥ ते कर्म उदय होय मिट गया जी, जबर आवै शुभ जोग। तिण वेल्या गुणठाणो सातमों जी, अंतर मुहूरत प्रयोग ॥ ३१ ॥ छठे प्रमाद आम्रप थकांजी लेश्या नोग शुभ आय । अधिक शुभ जोग आया थकांजी, अप्रमादी सातमें थाय ॥ ३२ ।। मद विषय कषाय उदिरर्नेजी, भावनिंदने विकथा ताहि । ए पाँचूं जोग रूप प्रमाद छै जी, तिण स्वू जोग आस्रव में जणाय ।। ३३ ।।
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