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( १२५ ) जोग दर्शण ए सापद्य निर्वद्य, उपयोग ज्ञान अवध्यारो जी। चारित्र वीर्य एच्यारु'इ, निर्वद्य कही विचारो जी ॥५॥
- झीणीचर्चा ढाल : .०२२ योग और भाव-आत्मा
शुभ जोग किसोभाव किसी आत्मा, च्यार भाव चित्त चाहि हो । उपशम वरजीने व्यार भाव छ, आत्मा जोग सुहाय हो ॥१२॥ अशुभ जोग किसोभाष किसी आत्मा, दोयभाव दुःखदाय हो। उदै भाव पारिणामिक कहिये, आत्मा जोग कहिवाय हो ।।१६।।
__-झीणीचर्चा ढाल ८ .०२३ योग आत्मा-द्रव्य जीव नहीं है-भावजीव है।
भावजीव किसो भाव किसी आत्मा, पाँच भाव कहिवाय हो। आत्मा द्रव्य विनां सातूंई, बुद्धिवंत जाणे न्याय हो ॥३१॥
--झीणीचर्चा ढाल
.०२४ योग आत्मा और कर्मबंधन का टूटना
कर्म कटै छै किण आत्मा सँ, जोग आत्मा सं जाणी जी। सात आत्मा तूं कर्म कटें नहीं, अधिक न्याय दिल आणीजी ॥
-झीणीचर्चा ढाल .०२५ योग और करनी
करणी लेखै आज्ञा मांही, किसी आतमां परणी जी। जोग दर्शणने चारित्र कहिये, अवरन आंणा करणीजी ॥१॥ करणी लेखै निर्वद्य कुण छै, चारित्र एकंत जोयो जी। जोग दर्शण सावज निवंद्य, अधरन कहियै कोयो जी ॥२॥
-झीणीचर्चा दाल : .०२६ अशुभ योग और मुनि
अशुभ जोग आवै छै साधू तणेजी, उत्कृष्ट छमासी दोष। तो पिण अत्यागभाव आधी नहीं जी, वर्णपालणपरिणाम निरदोष ॥ ४१॥
-झीणीचर्चा .०२७ योग आत्मा और सर्वउत्तर गुण
योग आत्मा और देश उत्तर गुणसर्व उत्तर गुण जोग आतमां, मुनि करै दश पचखाणोजी ॥ १२ ॥
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