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________________ (क) जो न सत्य रूप हो और न मृषा रूप हो उसको अनुभयवचनयोग या असत्यामृषावचनयोग कहते हैं । असंज्ञियों की समस्त भाषाएँ तथा संज्ञियों की आमन्त्रणी आदि भाषाएँ अनुभय भाषा कही जाती है । - ०२०३१ औदारिककाययोग का लक्षण पुरुमहदुदारुराजं एयठ्ठो संविजान तम्हि भवं । ओरालियं तमुच्चर ओरालियकाययोगो सो ॥ उदार (शरीर ) होनेवाला जो काययोग होता है उसको कहते हैं । • ०२०३२ औदारिकमिश्र काययोग का लक्षण ओरालिय उत्तत्यं विजाण मिस्तं तु अपरिपुण्णं तं । जो तेण संपजोगो ओरालिय मिस्सजोगो सो ॥ -गोजी० गा २३० औदारिक शरीर की अपरिपूर्णावस्था को औदारिक मिश्र कहा जाता है, उसके द्वारा होनेवाले योग को औदारिकमिश्र काययोग कहते हैं । '०२०३३ वैक्रिय काययोग का लक्षण विचिगुणइढिजुत्तं विक्किरियं वा हु होदि वेगुव्वं । तिस्से भवं य णेयं वेगुब्बियकायजोगो सो ॥ - गोजी • गा २३१ अनेक प्रकार के गुण और ऋद्धिओं से युक्त शरीर को वैक्रिया या विकूर्व कहते हैं तथा इस शरीर के द्वारा होनेवाले योग को वैक्रियकाययोग कहते हैं । ०२०३४ वैक्रियमिश्र काययोग का लक्षण वेगुन्वियत्तत्थं विजाण मिस्लं तु अपरिपुण्णं तं । जो तेण संपजोगो वेगुन्धियमिस्सज़ोगो - गोजी० गा २२६ औदारिक काययोग सो ॥ - गोजी • गा० २३३ वैक्रिय शरीर जब तक पूर्ण नहीं होता है तब तक उसको वैक्रियमिश्र कहते हैं । ऐसे शरीर के द्वारा होनेवाले योग को वैक्रियमिश्र काययोग कहते हैं । '०२:३५ आहारक काययोग का लक्षण Jain Education International आहारस्सुदयेण या पमत्तविरदस्त होदि आहारं । असंजम परिहरण' च ॥ संदेहविणासण X X X X आहरदि अणेण मुणी सुहमे अत्थे सयस संदेहे । गत्ता केवलिपासं तम्हा आहारगो जोगो ॥ - गोजी गा २३४, २३८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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